By Neha Kujur
छोटी सी आश थी, खुशियों का महल हो मेरा
अपनों के पलकों के छाव मे मेहफ़ूज़ बसेरा हो मेरा
दोस्तों के संग खेलते कूदते बीते हर दिन मेरा
सपनो की ऊँची उड़ान भरते गुजरे हर रात मेरा
पर न जाने किसकी नज़र ये मुझको लगी
टूट गयी हर एक ख्वाहिश मेरी
आखिर क्यों रास न आई उनको मेरी ये छोटी सी दुनिया
जो छीन लिया मुझसे मेरी हर एक खुशियाँ
मेरी उँगलियों जितनी तो मेरी उम्र ही थी
इस कच्ची उम्र मे सही गलत की समझ भी कहाँ थी
फिर भी क्यों कुछ लोगो के हवस का शिकार मै हुई????
समझ ना सकी आखिर क्या हुआ ये मेरे साथ
पर बुरा लगा, बहुत दर्द हुआ, पूरी रात रोती मै रही
एक दिन की नहीं रोज की ये बात बन गयी
फिर एक रात सब धुंधला सा लगा और मेरी साँसे थम गयी......
अंत तक ये बात मै समझ ना सकी
आखिर क्यों कुछ लोगो के हवस का शिकार मै हुई????
By Neha Kujur
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