By Harsh Raj
जिस्म सलामत है पर ज़ेहनी मरीज़ हो गए हो?
खो गया होश, तुम मदहोश हो गए हो?
छिन गए लफ़्ज़, तुम ख़ामोश हो गए हो?
तुम वो नहीं हो जो थे कभी, कहाँ खो गए हो?
क्या कहा, रूह के हवाले से कह रहे हो?
जो सहा न जा सके वैसे दर्द सह रहे हो?
दवा ली है तुमने पर इलाज अब भी जारी है,
सूखे पत्तों की तरह हवा के संग बह रहे हो?
वीरान है दिल का मोहल्ला,
हर मकान बना खंडहर है न?
चारों तरफ़ से आता दिख रहा अब
अज़ाब का समंदर है न?
वहां आसमान में कोई रहता नहीं,
इसी बात का तो तुम्हें मलाल है।
इबादत की थी बहुत तुमने उसकी,
पर खुदा तो बस एक इंसानी ख़याल है।
अब जाओगे कहाँ तुम ऐसे में?
न दवा काम आई, न दुआ।
एक काम करो, भुला दो ग़म को,
छोड़ो सब, जो हुआ सो हुआ।
ज़ेहनी मरीज़ हम सब हैं,
कोई इस मर्ज़ से बचा नहीं।
क्या है ये ज़िंदगी और क्यों है?
किसी को यहाँ कुछ पता नहीं।
हम ज़िंदा हैं और ये सच है।
इस सच को जीयो और सबको जीने दो।
ग़म को भुलाकर इस मय-ए-ज़िंदगी को
तुम भी पीयो और सबको पीने दो।
By Harsh Raj
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