By Prabhneet Singh Ahuja
रातें सुहानी, सर्द सौगातें
परदा-ए-दिल पोशी में जिंदगी कटी है;
यूं क्या किसी को ग़लत ठहराना,
अपनी तो गलतियों की वसीयत बड़ी है;
बंजर ज़मीनों का आवारा मुसाफ़िर
सहरा-नवर्दी में वो गुलाब खड़ी है
तुम पर खुदा की तमाम रहमत
संग-दिल पर नूर-ए-महताब की आज परछाई पड़ी है।
By Prabhneet Singh Ahuja
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