By Parul Singh
सपने हैं या भूल-भुलैया एक बार जो अंदर जाए वो बाहर निकल न पाए,
कभी मैं सपनों के पीछे तो कभी सपने मुझे अपनी ओर खींच ले जाए,
सपने हैं या कटीं पतंगें जो जल्दी से हाथ न आए,
कभी मैं सपनों को पकडूं तो कभी सपने मुझे उड़ा ले जाए,
सपने हैं या ओस की बूंदें जो छूते ही पानी बन जाए,
कभी मैं सपनों की लहरों संग खेलूं तो कभी सपने मुझे जीना सिखा जाए,
सपने हैं या बर्फ के गोले जो अपना खट्टा-मीठा रंग छोड़ जाए,
कभी मैं सपनों में रंग भरूं तो कभी सपने मुझमें रंग भर जाए,
सपने हैं या गहरा समंदर जो कभी गहराई नाप न पाए,
कभी मैं सपनों में डूबूं तो कभी सपने मुझे गहराइयों तक ले जाए,
सपने हैं या जाड़े की धूप जो आसमान से मिलना सिखाए,
कभी हम सपनों से मुंह फेरे तो कभी सपने बादलों में छुप जाए,
सपने हैं या रंग-बिरंगी गोलियां जो उदास चेहरे पर मुस्कान ले आए
कभी हम सपनों को बांटे तो कभी सपने हम सब को जोड़ जाएं।
सपने हैं या बचपन की कहानियां जो फिर से बच्चा बनने पर मजबूर कर जाए,
कभी हम पूरी दुनिया को कविताएं सुनाएं और फिर कोई रजाई खींच कर बोले-
"सुबह हो गई, जाग जाओ!"
By Parul Singh
👌
Nice 👍🙂
Awesome