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Sapno Ka Bachpan

By Dur Vijay Singh


बाहर हुए गर्भ से माँ के, परिजन लगे मनाने खुशियां

मंगल गाते जश्न मनाते, जलमय हुईं जननी की अखियां

आँचल में मुंह ढक कर मेरा, निज आँचल से दूध पिलाती

जाग-जाग कर घोर कष्ट में, लोरी गाकर हमें सुलाती

खुश अति मन आँगन में नांचत, मेरा प्यारा छौंना आया…।

बचपन आया बचपन आया, संग में ढेरों खुशियाँ लाया ।।


हाथ पैर बल जब चलते तो, पापा के मन को अति भाते

कहें बोलने को कुछ हमसे, साथ-साथ वो भी तुतलाते

होने लगे खड़े पैरों पर, थोड़े चलकर ही गिर जाते

चींटी मर गई मत रो बेटा, यूं कह पापा गले लगाते

बाल अदा लखि–लखि बालक की, तात मात ने अति सुख पाया…।

बचपन आया बचपन आया, संग में ढेरों खुशियाँ लाया ।।


दौड़-भाग और शोर-सराबा, हमको लगते थे अति प्यारे

सखा सभी मिट्टी खाकर, कोने में छिप जाते थे सारे

खेलन हक खाना तक भूले, खेल खेलते न्यारे - न्यारे

उमड़त दूध मात है टेरत, ओरे छौंना अब घर आ रे

कहे पुचकार कपोल बाल के, किसने तुझको था भरमाया…।

बचपन आया बचपन आया, संग में ढेरों खुशियाँ लाया ।।


टूटी नींद लखा तब हमने, ये सब मेरा सपना था

क्यों और किसने इसको लूटा, ये सब मेरा अपना था

तू! ने इसको दिया ही क्यों, जब अपने पास ही रखना था

जब-जब बंद करूं आँखें दे, इतना प्यारा सपना था

लिखा लेखनी गहि निज कर में, जितना उसमें से लिख पाया…।

बचपन आया बचपन आया, संग में ढेरों खुशियाँ लाया ।।


By Dur Vijay Singh



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