By Rohit Singh
बचपन - ये शब्द ना बहुत सी या दें, बहुत सी कहा नि याँ सबको बयाँ
करता है ना को ई टेंशन, ना को ई आगे की चि न्ता । वो दि न भी क्या दि न
थे ----
अब स्कूल की जि न्दगी बा की जि न्दगी से अलग चलती है इसका पहला
दि न और आखि री कुछ मा यनों में एक जैसे हो ते है ----
या र ये कि तना अजी ब-सा है ना ,
स्कूल का ये अनो खा कि स्सा है।
तब जेल लगता था जो स्कूल,
वो अब बस या दों का हि स्सा है।।
तब तो वो बचपन की मस्ति याँ थी ,
असली जि न्दगी हम स्कूल में जी रहे थे।
अब तो खुशी कहीं ना थी ,
बस गम के आँसू पी रहे थे।।
शा यद स्कूल ही वो जगह है,
जहाँ हम पहले दि न रो ते-रो ते आते हैं।
मस्ती भरी नटखटी जि न्दगी बि ता के,
आखि री दि न भी रो ते-रो ते जा ते हैं।।
अलग था इंग्लि श वा ली मैम के पढ़ा ने का style ,
तब नहीं करना हो ता था प्रो ग्रा म compile।
Maths वा ले सर क्या ही पढ़ा ते थे,
data और AI के ख्वा ब तो नहीं आते थे।।
ये excel और vscode ,
अब नहीं झेला जा रहा है,
ये दि खा वे का खेल,
अब और नहीं खेला जा रहा है।।
तो अब स्कूल की जी वन और कॉ लेज की जी वन के बा रे में बा त करते हैं
----
या र अभी तो स्कूल खत्म हुआ था ,
अब तो कॉ लेज के दि न आ गए।
अभी तो खुशि यों की आदत लगी थी ,
पर अब खो जा ने के दि न आ गए।।
पर कुछ सपनों के शी शे चटक गए,
कुछ इतना टूटे कि फन्दे पर लटक गए।
जि न्दगी की भा गदौ ड़ में खो गए वो ,
जि म्मेदा रि यों में हमेशा के लि ए सो गए वो ।।
या र स्कूल के वो दि न,
वा पस क्यूँ नहीं आ सकते।
खुशि यों के उस अनो खे दौ र में,
हम फि र से क्यूँ नहीं जा सकते।।
By Rohit Singh
Comentarios