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Shayrism

By Mayank Joshi


इबादत की थी खुदा से, उसने कु छ य ूँ कर ददया,

सुक न चाहा जब आज, तो माां के आूँचल मे रख ददया।

बात इतनी सी थी, की, ददल के सारे एहसास, अब खतम हो गये,

तभी शायद, ररश्ते आज, कागज़ के मोहताज हो गये ।

ना जानेककस फु ससत सेखुदा नेउस माूँको तराशा होगा,

जो वो अपनी जजिं दगी, अपनो सेशुरू कर, अपनो पेही खचसती जाती है।

अक्सर प छते हैं लोग मुझसे की हर पल हर लम्हा आप मुस्कु राते के से हो, सबक ये दस्त र~ए~जजिं दगी का हे, हम छुपा लेतेहेओर आप बता देतेहो।

लफ़्ज़ों से नहीं, अदाओां से बयाूँ हुआ करती है,

येतो मोहब्बत है जनाब, आांखों से सीधा ददल में उतरा करती है।

के हना तो बहोत कु छ था उनसे, मगर वो शब्द अनकहे ही रह गये,

सीने से लगते ही उनसे, सारे शब्द, अश्क से ही बेह गये।

हमारी नाराजगी पर वो हमे कु छ इस तरह मनाते हे,

ददल मे प्यार, अधरो पर मुस्कान ओर बस ससने से लग जाते हे।

इश्क़ का खुद मे एक उस ल होना चादहये,

जो भी हे, जेसा भी हे, वो वेसा ही कब ल होना चादहये।

इश्क़ अध रा, प्यार अध रा, मोहब्बत भी खुद मे अध री ही रेह गई,

एक चाहत ही तो थी जो हमे प रा कर गई।

ददल चाहता हेत ज सांग उचाईयों को छुकर देखे,

तुम डोर बन जाओ, ओर हम पतांग बन कर देखे।

इसेकभी अनकहा सा, अनस ना सा ही रेहनेददया जाय,

मोहब्बत को जनाब न्याय ओर अन्याय केतराज सेपरेही रेहनेददया जाय।

जो सुक न, दददार~ए~सनम मे हे ना, वो आसमानी महताब मे कहाूँ,

ओर जो बात इश्क़ मे हे ना, वो खुदा की जन्नत मे कहाूँ।

दोनो की कनगाहें ज़रा झुकीं सी, ओर ददल मे थोडी घभराहट सी रहा करती हे, हा, प्यार के कु छ रूँग एसे भी हुआ करते हे, जहाूँ इश्क़ की शुरुआत खामोश सी रहा करती हे।

ना तो ये चाहत अधुरी सी रेहती हे, ना वो आसमानी महताब अध रा सा रहा करता हे, ददल से गर चाहत हो ना, तो खुदा भी दुआ कब ल ककया करता हे।

ये ददल हे, ओर ददल से कभी बेमाकनयाूँ नही होती,

ददल का तो इश्क़ से गेहरा ररश्ता हे जनाब,

ओर इश्क़ मे कभी चालाकीयाूँ नही होती।

चाहत मे अक्सर हाल~ए~ददल, कनगाहों से ज़लख ही जाते हे,

ककतना ही समेट लो अश्क़ को, ये तो छलक ही जाते हे।

वो मुजमे, आजकल शबाब सी घुलती जा रही है,

चाहत, हाूँ यार, ये कम्बख्त चाहत, आजकल बेशुमार होती जा रही है।

ररश्तों मे ताल्लुकात कम करने से, फ़िक्र कहाूँ कम होती हे,

ये जज़्बात तो रूहानी है, घरों की दुररया बढनेसे, ददल की हसरत कहाूँ कम होती है।

बात गर, ददल से ददल की हो, तो एक~द जेसेकफर येखेद केसा,

ये तो इश्क़ हे जनाब, ओर इश्क़ मे एक~द जेसेकफर येभेद केसा।

तेरी, ओढ़नी भी सनम क्या कमाल करती है,

सरकती तेरे सर से है, ओर हाल, इस ददल का बे~हाल करती है।

खुदा से तेरा ररश्ता, बड़ा, अज़ीज़ सा लगता है सनम,

वरना हमारी ज़रा सी इबादत पर, तेरा मुजसे रुबरु होना, यककन नहीं आता।

हम ह म , ओ ह , ह म गई,

आज , वट म ह गई ।

हम ह इस ह स स म ह ,

ज जग म ह , हम स स ग ह

इन्सान के मुकद्दर की उसने ऐसी ककताब ललख दी,

साूँसे कगनती की, और ख्वादहशें, बेदहसाब ललख दी,

दौड़ता रहता है, ककस्मत की लकीरों को लेकर,

ददन परेशान, और तन्हाईयों मेरात ललख दी।

कागज़ पर आज, यारी ललखने बेठा था,

जज़िं दगी मेतेरी, दहस्सेदारी ललखने बेठा था,

कलम उठी ही नही, कागज़ पर चल ने को,




क्योूँ की, विा को आज, मैं, अल्फाज़ मे ललखने बेठा था।

कभी, ज़रा सी अदब बताई होती, तो क्या होता ?

विा~ए~सनम सी, त बरस गई होती, तो क्या होता ?

परेशान हुूँ, बेशुमार इस धुप से,

कभी, ज़रा सी मुजमे समाई होती, तो क्या होता ? (DESERT TO CLOUD)

ऊपर जा रहे हो ?

क्या राज़ है अन्दर, जो छुपा रहेहो ?

कु छ कीमती साूँसे कै द है क्या इसमे ?

या, दो रोटी की उम्मीद, छुपा रहेहो ? (TO BALLON)

येह उम्मीद, ही तेरी दवा बनेगी, त हौंसला तो रख,

दुआ भी तेरी कब ल होगी, त हौंसला तो रख,

बांज़र ज़मीं है, तो कली से मोहब्बत नहीं होगी क्या ?

ख्वादहशें तेरी मांजज़ल भी बनेगी, त हौंसला तो रख।।

मग़रूरी छाई है शाम को आज,

देख, तेरे तसव्वुर मे, अब रात हो आई,

रुख़~ए~महताब मेहफ़िल क्या सजी,

देख, मेहफ़िल मे आज कफर तेरी बात हो आई।

मोहब्बत का होगा असर धीरे_धीरे, ममलेंगी तुम्हारी नज़र धीरे_धीरे।

वो, ख्वाबों मे आयेगी सयानी बनकर, च रा लेगी नींदे मगर धीरे_धीरे।

मोहब्बत से मेरी जान वाककि नही है, ददल ममलाने लगी है, मगर धीरे_धीरे। इश्क़ मे तेरे मगरुर हो भी जाय तो क्या है, जज़िं दगी जी नेलगा हुूँ, मगर धीरे_धीरे।

ट टा हूँ, मबखरा नहीं हूँ मैं,

सुखस फ लों पर अभी, कनखरा नहीं हुूँ मैं,

मुकम्मल सा आलम अभी, मेरा बनाना बाकी है,

सपनो की ख्वादहशोूँ के आगे, अभी झुका नहीं हुूँ मैं।

अल्फाज़ भी है, अल्फाज़ रजचत कहानी भी,

लेकीन आज इन्हे खामोश ही रेहने दो,

कलम को कागज़ पर आज, बस य ूँ ही आराम से रेहने दो।

अभी_अभी तो हमने तुजे समझा था,

त कहाूँ अपने अगले पन्ने पलट रहा है,

अभी, जी, तो लेने दे "ए~इश्क़", इस पल को,

त कहाूँ अभी अपने एहसास बदल रहा है।

बेकरार ददल का अिसाना क्या बताए,

इश्क़ के आलम मे, ददल का हाल क्या सुनाए,

ये तो वो जज़्बात है, जो अल्िाज़ मे नहीं समाते,

जो हम खुद ही नहीं समझे, तो वो आपको क्या समझाए।

ह , म ए म ज ,

स _ स , म ए ,

स म म ,

ह म आज

एक ददन, माूँ की गोद मे सर रख क्या सोए, बेचैन से मन को आराम ममल गया, एक पल मे मानो हमे, सारा जहान ममल गया,

काश, के हम ता~उम्र य ूँ ही रेह पाय,

क्य ूँ की उन चांद लम्हो मे हमे, खुदा का दरबार ममल गया।

"एक पल होठों पे मुस्कान तो एक पल कनगाहों मे अश्क़ हे"...

माना की की चाहत का ये ककस्सा थोडा अजीब हे,

वरना पता के से चलता, की हम एक~द सरेकेककतना करीब हे।

गव स , स इ ग ,

ह स आ स स ग ,

~ए~ ह , इस हम ह स ह ग , ज स आप ~ह ~ज ओ, ह , स म आ म ग

इ प आज व ह ,

स म आज व हज ह ,

इ स प हम प स ह , आप ,

ज म आज ह स म ह

अक्सर मेने उन्हे हर तकलीफ मे मुस्कु रा ते हुए देखा हे,

खुद जरुरतमांद हे, लेकीन औरो की मदद करते हुए देखा हे,

पररस्थिती चाहे ककतनी ही मवपररत क्य ूँ ना हो,

हर पररिमत मे उन्हे प्यार बाूँटते हुए देखा हे,

हमनेतो जजिं दगी जेसी मीली वसी ही गुज़ार दी,

लेकीन उनको ददल की अमीरी ददखते हुए देखा हे।

शब्द वही, कभी लहजा भी बदल कर देखो,

सवाल वही, कभी जवाब भी बदल कर देखो, वजाह मे ही नही, कभी बेवजाह भी मुस्कु राकर देखो,

बदल जायगी ये लझन्दगी, कभी जीने का अथस भी बदल कर देखो।

इश्क़ मे अक्सर कु छ एसा हुआ करता हे,

मदहोशी मे अक्सर ददल का लशकार हुआ करता हे,

कु छ कस्मे, कु छ वादे, कु छ वफा तो कु छ यादें,

जो कु छ भी हो, बस प्यारा सा हुआ करता हे।

आज हम कफर उस दौर मे हैं,

जहा, दादा से कहानी ओर दादी से नुस्खे सुन ललये जाय,

पापा से फटकार ओर मा की गोद मे सर रख कर थोडा आराम कर ललया जाय, अब जब जजिं दगी मौका देही रही हे, तो क्य ां ना,

एक छोटी सी मुलाकत खुद के साथ भी कर ली जाय।




By Mayank Joshi




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