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Siksha Ki Paribhasha

Updated: Apr 11, 2024

By Eram Sharma


बाल रूप लेकर,

जीवन अस्तित्व में आता है ।

माता पिता के स्नेह में,

वह प्रथम शिक्षा को पाता है ।।


कुल की सीमा से परे होकर,

जब वह प्रतिवेश साकारता है।

सामाजिक रंग ढंग में,

अपनी छवि आकारता है ।।


शिक्षालय के पथ पर,

जब अपने कदम बढ़ाता है।

गुरु, विद्या, पुस्तक से,

अपने संबंध बनाता है ।।


इस शिक्षा के मंदिर में,

उचित शिक्षा को पाता है ।

मित्र कई बनाता है और

अग्रसर होता जाता है ।।



शिक्षा सरस्वती की वीणा है,

मन में उल्लास जगाती है।

शिक्षा समाज का दिनकर है,

विचारों के अंधियार मिटाती है ।।


शिक्षा देवी का अस्त्र है,

अधिकारों पर लड़ना सिखलाती है ।

शिक्षा मानवता का आधार है,

जीने का ढंग बतलाती है ।।


विद्यालय के उपरांत,

प्राप्त ज्ञान,

जो जीवन भर अपनाता है,

शुद्ध मायने में,

वही “शिक्षित” कहलाता है ।।


By Eram Sharma




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8 Comments

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Krishanu Halder
Krishanu Halder
Sep 27, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Excellent poem. Superbly written.

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Kunal Singh
Kunal Singh
Sep 27, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Superb very meaning full poem,

Like

Ravi Prakash Badal
Ravi Prakash Badal
Sep 27, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Bahut Badhiya

Like

Umesh Sharma
Umesh Sharma
Sep 27, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

excellent poetry,keep it up 👍

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NEELAM RAJBHAR
NEELAM RAJBHAR
Aug 04, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Nice one👍

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