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Thap-Thapaahat

By Upasana Gupta

फिर मेरे इस अन्तर्मन को, नर्म उम्मीदों की गर्माहट चाहिए।

और फिर एक बार मेरे सपनों की पीठ पर, 

शख्त हौसलों की थपथपाहट चाहिए।।

है बह गयी आंखों से सपनों की स्याही, जो इन आशुओं की दो बूंदों से,

बिखर गए जो इच्छाओं के काफिले, हैं कसने फिर हिम्मत के खूंटों से,,,

मझधार में जूझती सपनों की कश्ती को, जल्द किनारों तक पहुंचने की थकावट चाहिए।।

और फिर एक बार मेरे सपनों की पीठ पर, शख्त हौसलों की थपथपाहट चाहिए।।

नहीं फर्क हो आसान या फिर कठिन, मंजिल तक पहुंचे रास्ता वही चुनना है,

दुनिया तो कहती रहती है, अब कहना अपने मन का ही सुनना है,,,

मेरा जीवन, मेरे सपने, तो निर्णय भी मेरा ही होगा,

मेरे इस निर्णय में न तनिक भी, मुझे जनमत की मिलावट चाहिए।।

और फिर एक बार मेरे सपनों की पीठ पर, शख्त हौसलों की थपथपाहट चाहिए।।


By Upasana Gupta



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