top of page

Tripti

By Manisha Mullick


चलो

तुम और मैं आज बैठें

सांझ की अटारी पर

पैर लटकाकर,

थोड़ा और पास खींच लाएं चाँद

लंगर डालकर,

दौड़ लगाएं आसमान में

पकड़कर पंछियों के पर,

रात की किसी डाल पर चढें हम



चाँद पर बैठी बुढ़िया से बचकर,

और चुरा लाएं थोड़ा सा नूर

तारों से चलकर ,

बांध दें कोई रिश्ता क्षितिज पर

ज़मीं और आसमां को जोड़कर,

भर लें मन

मेरा तुम .. तुम्हारा मैं

जी भरकर,

चलो मैं और तुम

आज बैठें

सांझ की अटारी पर।।


By Manisha Mullick





4 views0 comments

Recent Posts

See All

The Morn

By Rabeya Kaur 1 No, Satan is not angry at Yahweh. He is not even Satan. All he is is the firstborn, the trial run, the prototype and the...

Mine Own

By Rabeya Kaur 1 You could have drowned me. 2 Thou art Mine Own child. 3 How could You do this to me? 4 Thou art Mine Own child. 5 Save...

Spectre

By Shonil Gramopadhye In those morbid sleepless nights, A voice echoes and cites, The questions and doubts, The wrongs and rights, What...

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page