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By Birkunwar Singh



क्या हुआ इस दौर ए हाज़िर को नानक

मान बैठे तुझे अपनी अमानत

फूल भी मुरझाये,

मुरझाए गरीब सारे

सबने चुना अपना खुदा

खाली रह गए फकीर सारे


By Birkunwar Singh



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