By Dr Kavita Singh
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना....
ज़िंदा हूँ मैं भी, कभी गुफ़्तगू करने आ जाना ...
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना...
कुछ सवाल हैं जिनके जवाब शायद तू ही दे पाए,
इंतज़ार ख़त्म हो ,शायद वह लम्हा कभी तो आ जाए,
मैंने तो ज़हन की किताब के हर पन्ने को पलट डाला ,
हरेक हर्फ़ और फ़साने को पूरा पढ़ डाला ,
फ़ुर्सत में तू ,अपने होने के मायने बतला जाना ....
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना...
ज़माने की जद्दोजहद में बढ़ती चली जाती हूँ ,
कभी खुद की ही परछाइयों से डर जाती हूँ,
ऐसा नहीं कि बदलते वक्त के रुख़ को नहीं समझा,
ऐसा नहीं कि वक्त के साथ कदम नहीं रखा,
मुश्किल सफ़र है, ज़रा हौंसला बढ़ा जाना ...
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना...
हर दिन कई किरदारों में बँटी रहती हूँ,
सुबह और शाम के गलियारों में कहीं रहती हूँ ,
तिनका-तिनका बँटोरा तब कहीं आशियाना बना ,
ख़ुशी से दहलीज़ सजाई, ग़म को ताले में रखा ,
ख़्वाबों की रोशनी से मन का दालान भर जाना....
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना...
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना...
महकती ज़िंदगी हैं मुझमें,यकीन दिला जाना...
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना...
ज़िंदा हूँ मैं भी, कभी गुफ़्तुगू करने आ जाना ...
ज़िंदगी कभी वक्त मिले तो अकेले मिल जाना...
By Dr Kavita Singh
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