By Neelu Singh
ज़िंदगी के नाटक में, कई किरदार बदलने होंगे। कभी अपने, कभी पराये, कभी घर-द्वार बदलने होंगे। कभी अपनों की भीड़ में, हम तनहा बैठे होंगे। कभी ग़ैरों से मुकम्मल, रिश्ते समझने होंगे। कभी ख़ुद का माँझी बन, भँवर पार करने होंगे।
तब स्वयं ही सब सपने, जैसे साकार होते होंगे। बस चलते जाना तुम, राहें ख़ुद और जुड़ते होंगे। कभी मंज़िलों की ही नई, परिभाषाएँ समझते होंगे। ज़िंदगी के नाटक में, कई किरदार बदलने होंगे, कभी नई ज़मीन, आसमाँ, नये क्षितिज सँवरते होंगे।
By Neelu Singh
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