By Nilofar Iqbal Shedbalkar
जख्म तो हमने भी बोहोत से खाए है ए आलीम
फकत हम उन जखमो की बात किया नहीं करते
और दुनिया को लगता है की
हम कभी रोया नही करते
दुनिया की नजरें आज काबिले ऐतबार नही
सवाल तो बोहोत है लेकिन
उनका कोई जवाब नहीं
एक गलत हरकत भी यहा इज्जत में खयाना है
बाकी जितना भी सही करो लेकिन दुनियावालों की
नजरों के तराजु मे कहाँ कोई सयाना हैं
मदत की जरूरत और जरूरत के वक्त की मदत
कर्ज और फर्ज मे शामिल हो जाती है
और इन्ही रस्तो के दोराहो पर
हमेशा जिन्दगी कायम रहजाती है।
By Nilofar Iqbal Shedbalkar
Very good
Great job , well done 👍👍👍👍