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अनकहे दर्द

Updated: Jan 18




By Naveen Kumar


ये कांटे, फूलों से पूछते हैं

क्यों हर डाली पर तुम सज जाते हो

सुबहा की बेला में, तुम इतना क्यों महकते हो

तुमसे पहले मैं आया फिर भी तुमसा न बन पाया

कैसे बन बैठा पीड़ा का कारण 

क्यों अनुराग का कारण न बन पाया


ये बादल, हवाओं से पूछते हैं

क्यों एक जगह तुम ठहरते नहीं

जाना कहां है तुमको, क्यों इतना चलते रहते हो

तुम संग जो नाता जोड़ा, घाट–घाट भटकता हूं

तुम संग जो नाता तोड़ा, घाट–घाट बरसता हूं 

रुकना पल बार भी लिखा नहीं चलता हूं या गिरता हूं


ये नदियां, पर्वतों से पूछती हैं

क्यों तुम इतना ऊंचे लंबे हो

बनकर धारा, जब तुमसे भिन्न निकलती हूं

पारुष त्यागकर अपना क्यों मेरे साथ चलते नहीं

धीरे–धीरे मिट्टी में गिरते, मैं कितना दूर निकलती हूं 

फिर अपने जैसों में मिलकर निष्फल बन मरती हूं


By Naveen Kumar





 
 
 

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Amazing one

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Nice 🙂

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Bahut khub..✨

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