By Shudhanshu Pandey
अब क्यों लौटे हो?
जब आंधियो में मुझे बिखेर गए थे तुम।
अब क्यों लौटे हो?
जब मेरी दुनिया वीरान कर गए थे तुम|
विरह की आग में ख़ुद को जलाते रहे कब तक,
ना मेरी याद तुझे आयी कितने मशरूफ़ थे तुम।
मेरे सारे दर्द लाईलाज़ हो चुके अब,
मेरे हर एक मर्ज़ के हकीम थे तुम।
गुरुर था मेरी खामोशी भी सुन लोगे बिनकहे,
मसला ये हुआ मेरी चीखें भी आंसू कर गए थे तुम।
क्यों लौटे हो फिर से उसी राह में,
जहां मुझे तड़पता हुआ छोड़ गए थे तुम।
मेरे हर अल्फ़ाज़ तरसते रहे तुझसे बात करने को,
मगर सुनने को तैयार नहीं थे तुम।
यूं तो आंखें खोल कर भी ये दुनिया दिखती नहीं मुझे
बंद आँखों से जो दिख जाए वो ख़्वाब थे तुम।
गुजर गए कई दिन तेरी राह तकते,
मुझसे गुज़ारा नहीं गया वो एक रात थे तुम।
अब क्यों लौटे हो आज आंसुओं के साथ,
अब मैं कब्र में हूं मुझे खो चुके हो तुम।
By Shudhanshu Pandey
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