By Nishant Saini
माना नहीं रहे हो जज्बात हमारे पहले से,
मना नहीं रहे अब वो तालुकात हमारे पहले से,
पर दिल अब भी पूछता है हर पल मुझसे,
के अब तुम घर कब आओगे।
फूल नहीं तो खंजर ही सही,
खुशियां नहीं तो दर्द ही सही,
देने नहीं तो कुछ लेने ही सही,
के अब तुम घर कब आओगे।
कभी वैसे ही चाय पीने,
या कभी यूं ही मेरा हाल पूछने,
कुछ ना तो अंजानो की तरह ही मिलने,
बताओ ना अब तुम घर कब आओगे।
कुछ ना तो कभी यूं ही रस्ते पर टकरा जाना,
या यूं ही कभी इत्तेफाक से मिल जाना,
यह भी नहीं तो बस एक झलक ही दिख जाना,
बस कभी तुम अपने घर वापस आ जाना।
के दिल हमेशा पूछता है की,
अब तुम घर कब आओगे।
By Nishant Saini
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