By Kartikeya Kashiv
तमस मे लिपटा अभिशाप हूं मैं....
काल हंस रहा है जिस पर, जीवन ठिठोली करता है...
रौशनी से दुत्कारा हुआ श्राप हूं मैं.. अभिशाप हूं मैं|
मैं किसका? कौन मेरा? किसका स्थायी... बस अकस्मात हूं मैं..
किसी और का नहीं अपने हृदय अपनी आकांक्षा पर घात हूं मैं..
ना उसके ना इसके बस अपने हिस्से का अभिशाप हूं मैं...
अभिशाप हूं भी तो क्या.. टूटूंगा मैं जब पूर्ण होगा काल मेरा...
जब भोगा हुआ पाप बनूँगा तो उठुंगा मैं और सुनुंगा तथास्तु...
बुझा हुआ ही सही पर नर्क की ज्वाला सा प्रताप हूं मैं... अभिशाप हूं मैं ||
By Kartikeya Kashiv
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