By Gaurav Abrol
तीन रंग में लिपटे जब वो , शूरवीर घर आता है
मात -पिता का मूक हृदय भी, चीख- चीख चिल्लाता है ||
आँख के आँसू जम जाते हैं , और समय थम जाता है
तीन रंग में लिपटे जब वो , शूरवीर घर आता है ||
अडिग हिमालय झूल रहा , और गंगा भी अब मौन हुई |
मातृभूमि की रक्षा की , संपन्न वही सौगंध हुई ||
राष्ट्र भक्ति का गीत अमर, तब बच्चा- बच्चा गाता है |
तीन रंग में लिपटे जब वो, शूरवीर घर आता है ||
पूछ रही विन्ध्या माला , और पूछे है हिन्द महासागर |
रूठ गया क्यों लाल मेरा , क्यों फूट रही जल की गागर ||
कोटि-कोटि वन्दन को उनके , अर्पित तब सब यशगाथा है |
तीन रंग में लिपटे जब वो , शूरवीर घर आता है ||
बहन की राखी ढूँढ रही है , भाई की कलाई को |
कुलदीपक बिन कहाँ मनेगी ख़ुशी भला दिवाली को ||
होली का दिन रंग बिना ही पल-पल बीता जाता है |
तीन रंग में लिपटे जब वो शूरवीर घर आता है ||
सिन्हासन हैँ डोल रहे , उन देश के ठेकेदारों के |
माँग रही जनता है शीश, उन जयचन्दों - गद्दारों के ||
व्यर्थ ना हो बलिदान परम ये , मन वचन रोज़ दोहराता है |
व्यर्थ ना हो बलिदान परम ये , अपना उनसे वादा है ||
तीन रंग में लिपटे जब वो शूरवीर घर आता है ||
तीन रंग में लिपटे जब वो , शूरवीर घर आता है
मात -पिता का मूक हृदय भी, चीख- चीख चिल्लाता है
आँख के आँसू जम जाते हैं , और समय थम जाता है
तीन रंग में लिपटे जब वो , शूरवीर घर आता है ll
वो वीर अमर हो जाता है , वो वीर अमर हो जाता है ||
By Gaurav Abrol
Nice !
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