By Swayamprabha Rajpoot
अयोध्या में राम आये हैँ...
पर ठहरेंगे कहाँ...
जब एक जगह रह रहकर थक जाएंगे राम जी तो टहलेंगे कहाँ???
मंदिर तो उनके लायक बना दिया पर इस जहाँ का क्या?
जैसे ही बाहर निकलेंगे वही गंदगी पाएंगे...
सड़को को गर कर दें नज़रअंदाज़ भी तो मन कैसे छुपाएंगे...
वही गरीबी सड़कों पे वहीं लाचारी चेहरों पर...
कँपकपाते हाथों से कोई उनका आसान कैसे बिछाएगा?
और आसान बिछाने की बात ही क्या जो फटा कपड़ा खुद पायेगा...
जब सड़को पर रात कोई डरती लड़की को पायेंगे...
सड़कों पर पड़ी बच्चियां जब उनको दिखलाएंगे...
जब खुद की माँ बहनों की रक्षा भी करना ना संभव है...
उस जहाँ में राम का रह पाना भी तो असंभव है...
मन में क्रोध वचन मीठे से, दो भाव जब रहते हैं...
आज इसी प्रकृति को कलियुग में अच्छा कहते हैँ..
गुरु का गुरुत्व ख़त्म, ना शिष्यों की मर्यादा है...
उसका ही अपना है सब जिसकी संपत्ति ज्यादा है...
इंसानियत की तो बात है क्या रिश्ते भी सारे झूठे हैँ...
थे आदर्श के जो स्तम्भ सारे ही टूटे फूटे हैँ...
ना बाहर स्वच्छ ना मन पवित्र भला राम कहाँ रह पाएंगे...
जो बसा लिए फिर भी जबरन, तो रुष्ट होकर चले जायेंगे...
गर आदर है तो राम बनो, मुख संग मन से भी राम कहो...
जहाँ गलत देखो वहां सही करो , पापों पे पूर्णविराम बनो...
हर स्त्री का सम्मान रहे, सबको मर्यादा ध्यान रहे...
ना कुपित कपित सी छाया हो, सबको सबका ही ध्यान रहे...
राम अकेले नहीं रहें उनका सारा दरबार रहे...
हो आचरण सबका शुद्ध, मर्यादित ही व्यवहार रहे...
नहीं जिम्मेदारी किसी और की ये बीड़ा स्वयं उठायेंगे...
संकल्प करोगे ऐसा जब, तभी राम जी आएंगे…
By Swayamprabha Rajpoot
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