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आज फ़िर....

By Omkar Dadhich


आज फिर एक बेटी नीलाम हो गई,

फिर किसी की हवस का शिकार हो गई,

अखबारों में तो जाती आई,

आज फिर एक जंग हिन्दू-मुस्लमान हो गई,


शायद पद्मावती नहीं थी वो,

तो राजपूती खून ठंडा पड़ गया,

शायद ना थी जाती मुस्लिम उसकी,

की हर खुदा का बंदा, जेहादी से इंसान हो गया,

शायद ना थी हिन्दुओं में ऊपर वो,

के दलित होना भी एक गुनाह हो गया..


आज फिर ख़बरों ने आधा दिखाया,

आधा तुम्हें जोड़ने को दे दिया,

इंसाफ के लिए अब मोमबत्तियों को ना कहना मेरे दोस्त,

की इंसाफ से रोग खत्म ना हुआ..

बलात्कारी तो मस्त घूमते दिखाई दिए,

मगर इक माँ को उसकी बेटी का शव तक न दिखाई दिया..



चिंता में रहते है माँ-बाप-भाई-बहन उसके,

जिसका नज़रों से तुमने बलात्कार कर दिया,


ना कपड़ों का दोष, ना दोष था मुस्कराने का,

गलती सोच की थी, समय था सोच सुधारने का..


शायद अब सम्भल जाओ,

रोक पाओ कदम अपने,

गलती नहीं गुनाह है ये,

झूठे है इस तरह के सपने,


वजह बनो किसी को सुरक्षित मेहसूस होने की,

फिर ना खबर आएगी किसी और बेटी की..


बस शिक्षा देना अपने दोस्त, भाई, बेटे को,

नारी सम्मान सर्वश्रेष्ठ है, बोलो उन्हें फैलाने को..


By Omkar Dadhich




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