By Kratika Agrawal
अब वक्त बहुत कम है
मुझे कुछ लिखना है
पर में करू क्या मैं बंद हो चुकी हुं
हा उस घड़ी की तरह
जिसकी नियती हैं चलना
हां उन आँखों की तरह
जिनकी नियती हैं पढ़ना।
(For this competition)
सोचा था शायद फिर से लिख पाउं
जो खो गई हुं मैं
फिर से खुद को ढूंढ पाउ
मैं शायरा थी कभी
अब बस कृतिका हुं।
मैं अपनी थी कभी
नजानेअबकौनहुं।
By Kratika Agrawal
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