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आत्मा : व्यक्ति के भीतर एक छुपी हुई शक्ति

By Ayush Sharma

आत्मा : व्यक्ति के भीतर एक छुपी हुई शक्ति 


        बहुत से लोग मानते हैं कि आत्मा केवल आध्यात्मिकता या धर्म से संबंधित एक रहस्यमय अवधारणा है। लेकिन यह धारणा पूरी तरह सही नहीं है। आत्मा को केवल एक धार्मिक विचार मानकर अनदेखा करना इसके वास्तविक महत्व को नकारने जैसा है। आत्मा हर व्यक्ति के भीतर छिपी एक शक्ति है, जो उसे सही और गलत के बीच भेद करने में मदद करती है। यह नैतिकता, अनुशासन और प्रेरणा का स्रोत है। आत्मा के महत्व को समझने के लिए इसे एक व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है। क्या आपने कभी महसूस किया है कि आपके भीतर कोई अदृश्य शक्ति आपको सही और गलत का भेद समझाने की कोशिश कर रही है? क्या यह संभव है कि हमारे भीतर की यह आवाज ही हमारी आत्मा हो? इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें आत्मा के महत्व को समझना होगा। आत्मा न केवल हमारी आंतरिक शक्ति है, बल्कि यह हमारे नैतिक और मानसिक विकास का आधार भी है। यह वह शक्ति है, जो हमें जीवन के हर मोड़ पर सही दिशा प्रदान करती है।


         हालांकि विश्व में आत्मा के संबंध में दो मत प्रचलित है - प्रथम मत उन लोगों व विचारों से संबंधित है जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं वहीं दूसरा मत उन लोगों व विचारों से संबंधित है जो आत्मा के अस्तित्व को नकारते हैं । जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं उनमें अधिकांशतः धर्म शामिल है वहीं जो इसके अस्तित्व को नकारते हैं उनमें बौद्ध धर्म (‘अनात्मवाद’ की मान्यता) व चार्वाक दर्शन जैसे भौतिकवादी दर्शन शामिल हैं । इसके अलावा वैज्ञानिक जगत में भी इसके अस्तित्व को कम ही मान्यता प्राप्त है क्योंकि विज्ञान भी भौतिक अस्तित्व पर विश्वास करता है ।


            विश्व के अधिकांश धर्मों में आत्मा को मान्यता प्राप्त है, लेकिन हर धर्म में इसका स्वरूप, कार्य, और महत्व अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया गया है। धर्मों के आधार पर आत्मा का अर्थ और उसकी भूमिका भिन्न हो सकती है, लेकिन यह विचार सामान्यतः समान है कि आत्मा किसी व्यक्ति का मूल अस्तित्व और शाश्वत तत्व है जो शरीर में रहते हुए भी शरीर से अलग और अमर होती है, क्योंकि इसका कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। इसके अलावा कई दृष्टिकोण आत्मा को शरीर में विद्यमान ऊर्जा और शक्ति का पुंज मानते हैं।


          हिंदू धर्म में आत्मा को शाश्वत और अविनाशी तत्व माना जाता है (श्रीमद्भगवद्गीता में आत्मा के संबंध में कहा गया है - "नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः” अर्थात् आत्मा को न काटा जा सकता है, न जलाया जा सकता है)। यह शरीर से अलग होती है और मृत्यु के बाद भी शाश्वत रहती है। आत्मा के बारे में यह विश्वास है कि यह जीवन के उद्देश्य, कर्म, और पुनर्जन्म से जुड़ी होती है। हिंदू धर्म में आत्मा का मुख्य उद्देश्य मोक्ष (मुक्ति) की प्राप्ति है, जो आत्मा के पुनर्जन्म से मुक्त होने का रास्ता है। ईसाई धर्म में आत्मा को एक अमर तत्व माना गया है, जो व्यक्ति के शारीरिक मृत्यु के बाद भी अस्तित्व में रहती है। यह आत्मा ईश्वर से जुड़ी होती है, और इसका मुख्य उद्देश्य ईश्वर के साथ पुनः मिलन (संसारिक जीवन के बाद) है। ईसाई धर्म में आत्मा का सिद्धांत बाइबिल में स्पष्ट रूप से देखा जाता है, जहाँ जीवन के बाद के निर्णय के लिए आत्मा को स्वर्ग या नर्क भेजा जाता है। इस्लाम धर्म में आत्मा को ‘रूह’ कहा जाता है और यह अल्लाह से जुड़ी होती है। इस्लाम के अनुसार, आत्मा जीवन के बाद का मार्गदर्शन करती है और पुनः जीवन (कयामत के दिन) के लिए जिम्मेदार होती है। आत्मा के कर्मों का हिसाब कयामत के दिन होगा, और यह स्वर्ग या नर्क में भेजी जाएगी । यहूदी धर्म में भी आत्मा का सिद्धांत है, जिसमें इसे व्यक्ति के जीवन का एक अमर तत्व माना जाता है। यहूदी धर्म में आत्मा का मुख्य उद्देश्य धर्म, अच्छे कर्म और जीवन के बाद के जीवन में स्वर्ग की प्राप्ति है। जैन धर्म में आत्मा को ‘जीव’ कहा जाता है और इसे शाश्वत, अविनाशी और स्वतंत्र माना जाता है। जैन धर्म में आत्मा का मुख्य उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति है, जो आत्मा का पूर्ण शुद्धिकरण और संसार से मुक्ति है। सिख धर्म में आत्मा को परमात्मा के साथ जुड़ा हुआ माना जाता है। सिख धर्म में आत्मा का उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना और ईश्वर के साथ मिलकर संसार से बंधन मुक्त होना है। पारसी धर्म में भी आत्मा की महत्वपूर्ण और विशिष्ट स्थिति है। पारसी धर्म के अनुसार आत्मा (या "रूह") जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है, जो जन्म से लेकर मृत्यु तक व्यक्ति के शरीर में रहती है और जीवन के बाद विभिन्न अवस्थाओं से गुजरती है।


            इसके अलावा आत्मा  का सबसे अधिक भयानक व विकृत रूप हमें लोक प्रचलित कथाओं और सिनेमा में दिखाई देता है जहां आत्मा को एक उड़ते हुए अभौतिक शरीर के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और वह अभौतिक शरीर अपने साथ हुए पिछले जन्म के अपराधों का बदला ले रहा होता है और हैरानी की बात तो यह है कि वहाँ उसे मनुष्य (जो कि शरीर के साथ आत्मा धारण करता है) से अधिक शक्तिशाली चित्रित कर दिया जाता है । ध्यातव्य है कि आत्मा को एक शक्तिशाली और बदला लेने वाली ताकत के रूप में प्रस्तुत करना एक काल्पनिक और विकृत छवि है, जो वास्तविक धार्मिक और दार्शनिक अवधारणाओं से मेल नहीं खाती। इन चित्रणों का उद्देश्य मात्र मनोरंजन होता है जिसमें कोई वास्तविकता नहीं होती। लेकिन इन्हें वास्तविकता से जोड़ने से भ्रम पैदा हो सकता है। धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोणों में आत्मा को एक शाश्वत तत्व माना जाता है, जो किसी भी प्रकार के प्रतिशोध से परे, जीवन के उद्देश्य और उन्नति की ओर अग्रसर होती है।


            अब प्रश्न यह उठता है कि वास्तव में आत्मा क्या है ? आत्मा वास्तविकता में एक बहुआयामी अवधारणा है, जिसे न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बल्कि वैज्ञानिक, व्यावहारिक, मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। आत्मा को मनोवैज्ञानिक रूप से व्यक्ति की आत्म-चेतना (Self-Consciousness) और अंत:करण (Conscience) के स्रोत के रूप में देखा जा सकता है। यह वह तत्व है, जो व्यक्ति को खुद के बारे में सोचने, निर्णय लेने और जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रेरित करता है और नैतिक मूल्यों और सही दिशा की ओर प्रेरित करता है। दार्शनिक दृष्टिकोण से आत्मा को एक "आंतरिक सत्य" माना जा सकता है, जो व्यक्ति को जीवन के गहरे अर्थ, उद्देश्य और अस्तित्व का बोध कराती है। यह व्यक्ति के भीतर की वह शक्ति है, जो उसे कठिन परिस्थितियों में धैर्य और आत्मविश्वास प्रदान करती है। यह आत्मनिरीक्षण और आत्म-विकास का आधार है। व्यावहारिक दृष्टिकोण से आत्मा को अंतर की आवाज (Inner Voice) कहा जा सकता है, जो व्यक्ति को जीवन में सही मार्गदर्शन प्रदान करती है। उसे नैतिक और सामाजिक दायित्वों की याद दिलाती है और कठिन समय में उसे सकारात्मकता और मानसिक स्थिरता प्रदान करती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आत्मा को व्यक्ति के मस्तिष्क की गहराई में छिपी प्रेरणा और चेतना माना जा सकता है। यह वह ऊर्जा है, जो जीवन के प्रति व्यक्ति की सोच और कर्मों को दिशा देती है। अंततः सामान्य रूप से यह कहा जा सकता है कि आत्मा व्यक्ति के भीतर वह आंतरिक शक्ति है, जो उसकी चेतना, नैतिकता, और सही-गलत के निर्णय लेने की क्षमता का स्रोत है। यह वह अदृश्य शक्ति है, जो व्यक्ति को मानसिक संतुलन, नैतिकता, और आत्म-प्रेरणा प्रदान करती है।


         एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या आत्मा जड़ और चेतन सभी वस्तुओं में पाई जाती है ? एक दृष्टि से देखा जाए तो यह कहा जा सकता है कि आत्मा जड़ और चेतन दोनों ही वस्तुओं में पाई जाती है । चेतन प्राणियों में तो यह स्पष्ट दिखाई देती है जो  उनके व्यवहार को निर्देशित करती है ।  हालांकि फिर भी इसका सबसे परिष्कृत रूप हमें मानव में ही दिखाई देता है । इसके अलावा जड़ प्राणियों में भी यह ऊर्जा के स्रोत के रूप में विद्यमान मानी जा सकती है । ध्यातव्य है कि प्रत्येक वस्तु सूक्ष्म परमाणुओं से मिलकर बनी है जिसमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन अपने अस्थिर रूप में विद्यमान रहते हैं और इन कणों को निरंतर गतिशील बनाए रखने के लिए जो ऊर्जा कार्य करती है उसे हम आत्मा कह सकते हैं । चूँकि जड़ वस्तुओं में चेतना का अभाव रहता है अतः इसे  न तो स्पष्ट आंखों से देखा जा सकता है और न ही हमें इनमें मनुष्य जैसा कोई परिष्कृत रूप दिखाई देता है । ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यह विचार सर्वात्मवाद का समर्थन करता है ।


           एक ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि कभी-कभी हम भ्रमवश आत्मा और चेतना दोनों को एक ही मान लेते हैं परंतु वस्तुत: दोनों में अंतर है । आत्मा और चेतना के बीच गहरा संबंध है, लेकिन दोनों एक ही नहीं हैं। आत्मा व्यक्ति के भीतर की गहराई में छिपी शक्ति है, जो उसकी नैतिकता, प्रेरणा और जीवन के उद्देश्य से जुड़ी होती है। इसे स्थायी और शाश्वत माना जाता है जबकि चेतना व्यक्ति की मानसिक जागरूकता और अनुभव करने की क्षमता है। यह वर्तमान क्षण में कार्यशील रहती है और व्यक्ति के विचारों, भावनाओं और कार्यों को संचालित करती है। उदाहरण के लिए, आपके जीवन में सही निर्णय लेने की प्रेरणा आत्मा से आ सकती है, लेकिन उस निर्णय को समझने और लागू करने की प्रक्रिया चेतना द्वारा संचालित होती है। आत्मा को गहराई, स्थिरता और शाश्वतता का प्रतीक माना जाता है। यह व्यक्ति के अस्तित्व का केंद्र है। जबकि चेतना एक गतिशील अवस्था है, जो विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं के माध्यम से व्यक्त होती है। हालाँकि फिर भी कुछ दार्शनिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोणों में आत्मा को चेतना का ही सर्वोच्च और शुद्ध रूप माना जाता है। आत्मा चेतना का आधार है, जो व्यक्ति को गहरे सत्य और सही दिशा की अनुभूति कराती है जबकि चेतना आत्मा का बाहरी रूप है, जो व्यक्ति के जीवन में प्रकट होती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि "आत्मा व्यक्ति की मूलभूत शक्ति है, और चेतना आत्मा का वह आयाम है, जो व्यक्ति के अनुभव और कार्यों में प्रकट होता है।”


         अब अगला प्रश्न यह उठता है कि आत्मा व्यक्ति के भीतर एक छुपी हुई शक्ति कैसे है ? इसे समझने के लिए, हम इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से देख सकते हैं । आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं में आत्मा को शाश्वत, अविनाशी, और परम सत्ता से जुड़ा हुआ माना जाता है। इसे एक प्रकार की ईश्वर की ऊर्जा या दिव्य शक्ति के रूप में देखा जाता है, जो व्यक्ति के भीतर रहने वाली मूल शक्ति है। इसके अनुसार आत्मा वह तत्व है जो न केवल जीवन के उद्देश्य को निर्धारित करती है बल्कि उसे सही दिशा में मार्गदर्शन भी प्रदान करती है। इसे किसी बाहरी शक्ति या सिखाने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि आत्मा स्वाभाविक रूप से सही और गलत के बीच अंतर करने की शक्ति रखती है। आत्मा को एक मानसिक ऊर्जा के रूप में भी देखा जा सकता है, जो व्यक्ति के भीतर निहित होती है। यह ऊर्जा हमारे मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक कार्यों को संचालित करती है। जब हम अपने भीतर गहरे स्तर पर जाते हैं और आत्म-निरीक्षण करते हैं, तो हम महसूस करते हैं कि कुछ आंतरिक शक्ति हमें प्रेरित करती है, हमें सही निर्णय लेने के लिए प्रेरित करती है, और हमें अपने उद्देश्यों के प्रति प्रतिबद्ध रखती है। आत्मा को एक आंतरिक प्रेरक शक्ति के रूप में भी माना जा सकता है, जो हमें आत्मनिर्भरता, आत्मविश्वास, दया, करुणा, सहानुभूति, समानुभूति, प्रेम व साहस जैसे मूल्य प्रदान करती है। यह हमें अपने विचारों और कार्यों को आत्म-समझ के साथ करने की क्षमता देती है। जब हम अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानने और अपने उच्चतर ‘स्व’ को प्राप्त करने की यात्रा पर निकलते हैं, तो आत्मा हमें सही दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करती है। एक शक्ति के रूप में यह व्यक्ति को अंदर से उन्नति करने की प्रेरणा देती है और उसे जीवन में उच्चतम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित करती है। आत्मा एक अव्यक्त ऊर्जा के रूप में मौजूद होती है, जो दृश्य रूप में प्रकट नहीं होती, लेकिन वह व्यक्ति के जीवन में सतत रूप से सक्रिय रहती है। यह वह शक्ति है, जो व्यक्ति को चुनौतियों का सामना करने की क्षमता और अपने आंतरिक संघर्षों को जीतने की ऊर्जा देती है। यह शक्तियाँ व्यक्ति के आंतरिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। आत्मा, व्यक्ति के भीतर एक छुपी हुई शक्ति है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। चाहे आध्यात्मिक दृष्टिकोण से हो, मानसिक ऊर्जा के रूप में हो, या आत्मनिर्भरता की प्रेरणा देने वाली शक्ति के रूप में हो, आत्मा का अस्तित्व व्यक्ति के भीतर गहराई से जुड़ा होता है, जो उसके जीवन की हर दिशा को प्रभावित करता है।


           मनोविज्ञान आत्मा को व्यक्ति के भीतर की उस शक्ति के रूप में देखता है, जो प्रेरणा, नैतिकता और अंतर्ज्ञान प्रदान करती है। यह मानव मस्तिष्क की गहरी परतों (subconscious mind) और आंतरिक चेतना (inner consciousness) से जुड़ी है। आत्मा व्यक्ति के "स्व" की अनुभूति और जीवन के उद्देश्य को समझने का माध्यम है । यह "अंतर्मन की आवाज" के रूप में कार्य करती है। आधुनिक विज्ञान आत्मा को ऊर्जा या सूचना के रूप में देखने का प्रयास करता है। क्वांटम भौतिकी में, यह संभावना व्यक्त की गई है कि आत्मा ऊर्जा के एक स्थिर रूप के समान हो सकती है, जो मृत्यु के बाद भी समाप्त नहीं होती । रोजर पेनरोस व स्टुअर्ट हैमरॉफ द्वारा विकसित “Orch-OR” सिद्धांत चेतना को क्वांटम भौतिकी की परिघटनाओं के साथ जोड़ने का प्रयास करता है। पेनरोस और हैमरॉफ का मानना है कि मस्तिष्क के न्यूरॉन्स के भीतर सूक्ष्म स्तर पर क्वांटम घटनाएँ होती हैं, जो चेतना के अनुभव को जन्म देती हैं। इसके अलावा आत्मा को मस्तिष्क की जैविक प्रक्रियाओं से परे एक "अज्ञात आयाम" के रूप में भी देखा जा सकता है। आत्मा व्यक्ति के भीतर नैतिकता और सही-गलत का भेद करने की क्षमता का केंद्र है। यह समाज में सत्य, ईमानदारी और करुणा को बनाए रखने का प्रेरक तत्व है। यह व्यक्ति को समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बनाती है। यह व्यक्ति के भीतर शक्ति, धैर्य और प्रेरणा का स्रोत है। यह जीवन के कठिन समय में व्यक्ति को आगे बढ़ने और संतुलन बनाए रखने में मदद करती है । आत्मा वह शक्ति है, जो व्यक्ति को अपने लक्ष्यों और आदर्शों की ओर प्रेरित करती है। आत्मा को केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं देखा जाना चाहिए। यह ब्रह्मांड के हर कण से जुड़ी हुई है। यह "वसुधैव कुटुंबकम्" के आदर्श को साकार करती है। आत्मा के रूप में हम सभी के पास एक ऐसा मार्गदर्शक है, जो न तो कभी थकता है और न ही गलती करता है। 


       आत्मा व्यक्ति को अपनी भावनाओं, इच्छाओं और लालचों पर नियंत्रण रखने में मदद करती है। यह आंतरिक शक्ति हमें जीवन के कठिन समय में प्रलोभनों से बचने और नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है। आत्मा की शक्ति व्यक्ति के भीतर से संकल्प शक्ति (Willpower) को जन्म देती है। आत्मा व्यक्ति को यह विश्वास दिलाती है कि कठिन परिस्थितियों का सामना करना संभव है। यह शक्ति व्यक्ति को धैर्य और स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी चुनौतीपूर्ण क्यों न हो। आत्मा व्यक्ति को अपने आंतरिक उद्देश्य के प्रति जागरूक करती है और जीवन के अर्थ को समझने में मदद करती है। आत्मा की शक्ति व्यक्ति को असफलता से विचलित हुए बिना अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ने में मदद करती है । यह व्यक्ति को अपने उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से पहचानने और उन्हें प्राप्त करने के लिए रणनीतिक रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। आत्मा व्यक्ति के भीतर एक अक्षय ऊर्जा का स्रोत है, जो उसे कठिन समय में भी हिम्मत नहीं हारने देती। आत्मा की शक्ति व्यक्ति को आत्म-विश्लेषण करने और अपनी गलतियों से सीखने की प्रेरणा देती है। आत्मा व्यक्ति के भीतर नैतिकता और मूल्यों को स्थापित करती है, जो उसे अपने लक्ष्य की प्राप्ति में नैतिक और उचित मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती है। निसंदेह महात्मा गांधी का साधन के साथ-साथ साध्य की पवित्रता का विचार आत्मा से ही प्रेरित था । आत्मा की प्रेरणा व्यक्ति को धोखा, लालच और अनैतिक तरीकों से बचाती है। यह व्यक्ति को यह सिखाती है कि सफलता केवल मेहनत और सच्चाई से ही संभव है। इसके अलावा आत्मा की शक्ति व्यक्ति को अपने डर, असफलताओं और असुरक्षाओं से ऊपर उठने में सहायता करती है । आधुनिक मनोविज्ञान और न्यूरोसाइंस में आत्मा को एक रूपक के रूप में देखा जाता है, जो व्यक्ति के अंतर्मन (Subconscious Mind) और संकल्प शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। जब व्यक्ति अपने मन में स्पष्ट उद्देश्य और सकारात्मक विचार रखता है, तो यह उसके मस्तिष्क में डोपामाइन जैसे प्रेरणादायक रसायनों को सक्रिय करता है और यह प्रक्रिया अंततः आत्म-अनुशासन और दृढ़ निश्चय को बढ़ावा देती है। 


          यही नहीं आत्मा की शक्ति का रचनात्मकता और नवाचार में भी बहुत योगदान है । आत्मा व्यक्ति के भीतर छिपे हुए अंतर्ज्ञान को जागृत करती है, जिससे नई और मौलिक विचारधाराएँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए, कलाकारों और लेखकों में उनके आंतरिक अनुभव उनकी रचनाओं में झलकते हैं। आत्मा की यह प्रेरणा उन्हें अपनी कल्पनाओं को अभिव्यक्ति का रूप देने में मदद करती है । आत्मा की शक्ति व्यक्ति को किसी भी बाहरी प्रोत्साहन के बिना अपने रचनात्मक प्रयासों को जारी रखने की प्रेरणा देती है। इसी प्रकार वैज्ञानिक और शोधकर्ता भी अपनी आंतरिक जिज्ञासा के बल पर नए आविष्कार करते है । आत्मा व्यक्ति को पुरानी धारणाओं और सीमाओं से परे सोचने के लिए प्रेरित करती है। यह नवाचार के लिए आवश्यक जोखिम लेने और नई दिशा में प्रयास करने में मदद करती है। आत्मा की यह शक्ति व्यक्ति को आंतरिक प्रेरणा, धैर्य, और कल्पनाशीलता प्रदान करती है, जिससे वह अपनी क्षमताओं को पहचानने और उन्हें विकसित करने में सक्षम होता है। उदाहरण के लिए, मैडम क्यूरी, विनोबा भावे, अमर्त्य सेन, अभिजीत बनर्जी, एस्तर डफ्लोव, सोनम वांगचुक व अरुणा रॉय आदि के योगदानों को इस श्रेणी में रखा जा सकता है ।


         इसके अलावा आत्मा व्यक्ति को आत्म-चेतना विकसित करने में मदद करती है, जिससे वह अपनी कमजोरियों और क्षमताओं को समझ पाता है। यह आत्म-चेतना दूसरों के दृष्टिकोण और भावनाओं को समझने की क्षमता बढ़ाती है, जिससे संबंध मजबूत होते हैं। आत्मा की शक्ति व्यक्ति को दूसरों की भावनाओं और जरूरतों को गहराई से महसूस करने में मदद करती है। यह संवेदनशीलता सहानुभूतिपूर्ण संवाद और समझदारी को बढ़ावा देती है, जो बेहतर संबंधों की नींव है। आत्मा व्यक्ति को क्षमा, सहनशीलता, और दूसरों की गलतियों को स्वीकार करने का गुण प्रदान करती है। यह गुण आपसी मतभेदों को दूर करने और संबंधों को सकारात्मक बनाए रखने में सहायक होता है। आत्मा की प्रेरणा व्यक्ति को ईमानदार, स्पष्ट, और सकारात्मक संचार के लिए प्रेरित करती है। यह दूसरों के साथ सहयोग और सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करती है।


         केवल इतना ही नहीं आत्मा की शक्ति का व्यक्ति के भीतर सहानुभूति, दया, संवेदनशीलता और करुणा के विकस में भी योगदान है। आत्मा को मानवीय मूल्यों और गुणों का स्रोत माना जाता है। सहानुभूति, दया, और करुणा जैसे गुण आत्मा से प्रेरित होते हैं और व्यक्ति को दूसरों की भलाई के लिए प्रेरित करते हैं। आत्मा व्यक्ति को दूसरों के दुख और तकलीफों को महसूस करने की शक्ति देती है। यह सहानुभूति सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर दूसरों की सहायता करने का मार्ग प्रशस्त करती है। आत्मा करुणा के माध्यम से दूसरों के साथ गहरे भावनात्मक जुड़ाव की क्षमता प्रदान करती है । करुणा न केवल दूसरों की मदद करने की प्रेरणा देती है बल्कि समाज में सकारात्मकता और एकता को बढ़ाती है। आत्मा व्यक्ति को अहंकार और नकारात्मकता से ऊपर उठाकर दूसरों के प्रति दयालु बनने में मदद करती है। दया का यह अभ्यास व्यक्ति को संतुलित, शांत, और खुशहाल जीवन जीने में सहायता करता है । उदाहरण के लिए, महात्मा गांधी की आत्मा की शक्ति ने उन्हें अहिंसा और सत्य के माध्यम से दूसरों के लिए प्रेरणा बनने में मदद की व मदर टेरेसा और स्वामी विवेकानंद की करुणा और दया आत्मा की शक्ति का सजीव उदाहरण हैं।


       आत्मा की शक्ति व्यक्ति को "खुद से लड़ने" और अपने भीतर की कमजोरियों को हराने में मदद करती है । व्यक्ति के भीतर जब नैतिकता और लालच के बीच संघर्ष होता है, तो आत्मा की शक्ति सही निर्णय लेने की प्रेरणा देती है। यह उसे दीर्घकालिक लाभ के लिए त्वरित सुखों का त्याग करने की शक्ति प्रदान करती है। आत्मा की शक्ति व्यक्ति को अपनी कमजोरियों को अवसरों में बदलने के लिए प्रेरित करती है। इसके अलावा आत्मा की शक्ति व्यक्ति को केवल सही और गलत के मध्य अंतर ही नहीं बताती बल्कि यह नैतिक द्वंद्वों के समाधान में भी सहायता करती है । उदाहरण के लिए, कुरुक्षेत्र युद्ध के प्रारंभ में अर्जुन अपने परिवार के सदस्यों, गुरुओं, प्रियजनों और अन्य लोगों को युद्धभूमि में खड़ा देखकर एक गहरे नैतिक द्वंद्व में पड़ जाते हैं और सोचने लगते हैं कि इस युद्ध में न जाने कितने निर्दोष लोग मारे जाएंगे जिनमें से कुछ केवल अपने वचन व कर्तव्य का पालन कर रहे हैं और कुछ केवल राजाज्ञा का पालन कर रहे हैं । ऐसी परिस्थिति में अर्जुन के सामने नैतिकता के दो पक्ष खड़े हैं: एक ओर धर्म, न्याय, और समाज की रक्षा के लिए युद्ध करना और दूसरी ओर अपने गुरु, प्रियजनों और अन्य निर्दोष लोगों के प्रति दया और करुणा दिखाते हुए युद्ध से पीछे हटना। अर्जुन अपने इस नैतिक द्वंद्व को सुलझाने में असमर्थ हो जाते हैं और श्री कृष्ण से मार्गदर्शन मांगते हैं। श्री कृष्ण उन्हें समझाते हैं कि उनका धर्म (कर्तव्य) समाज के व्यापक हित में अधर्म का नाश करना है। यह आत्मा की शक्ति का बेहतर प्रयोग दर्शाता है, जहाँ व्यक्तिगत संबंधों और भावनाओं से ऊपर उठकर न्याय और सत्य का साथ दिया जाता है। 


      आत्मा की शक्ति व्यक्ति को केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उसे समाज के लिए कार्य करने, सकारात्मक परिवर्तन लाने, और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने की प्रेरणा देती है। यह शक्ति सामाजिक समरसता, न्याय, और सेवा के लिए एक अदृश्य शक्ति के रूप में कार्य करती है।आत्मा व्यक्ति को सामाजिक बुराइयों के खिलाफ खड़े होने और परिवर्तन के लिए कार्य करने का साहस प्रदान करती है। यह शक्ति समाज में क्रांति और सुधार की प्रक्रिया को तेज करती है। आत्मा की प्रेरणा से व्यक्ति में नेतृत्व का गुण विकसित होता है, जो समाज को एक सकारात्मक दिशा में ले जाने में सहायक होता है। उदाहरण के लिए, अंबेडकर जी की आत्मा की शक्ति ने उन्हें जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ने और समाज में समानता स्थापित करने के लिए प्रेरित किया जिससे समाज सुधार संभव हुआ। इसी प्रकार, नेल्सन मंडेला की आत्मा की शक्ति ने उन्हें रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करने और दक्षिण अफ्रीका में समानता लाने की प्रेरणा दी। एलबर्ट श्वाइट्ज़र ने अफ्रीका में चिकित्सा और मानव सेवा के लिए जीवन समर्पित किया। उनकी आत्मा ने ही उन्हें दूसरों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया था। इसी प्रकार स्वामी दयानंद सरस्वती, राजा राममोहन राय, सावित्रीबाई फुले, ईश्वरचंद्र विद्यासागर आदि अपने सामाजिक सुधारों में आत्मा की शक्ति द्वारा ही संचालित थे । इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि किस प्रकार आत्मा की शक्ति का उपयोग समाज और संगठनों में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए किया जा सकता है ।


             अब कोई व्यक्ति यह प्रश्न उठा सकता है कि जब आत्मा सार्वभौमिक है तो फिर निश्चित ही यह अपराधियों में भी होगी और तब यह उन्हें सही दिशा में निर्देशित क्यों नहीं करती और यह उन्हें अपराध करने से क्यों नहीं रोकती, फिर क्यों समाज में इतने जघन्य अपराध होते हैं? आत्मा, चाहे वह सार्वभौमिक हो, व्यक्ति को सही और गलत का बोध कराने में सक्षम होती है और केवल मार्गदर्शन प्रदान करती है; इसका कार्य निर्णय लेना नहीं है। मानव स्वतंत्रता (Free Will) वह शक्ति है जो व्यक्ति को अपनी इच्छाओं और प्रवृत्तियों के अनुसार कार्य करने की अनुमति देती है। अपराध करने वाला व्यक्ति भी सही और गलत के बीच अंतर महसूस करता है, लेकिन उसके निजी स्वार्थ, लोभ, या मानसिकता उसके निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं। आत्मा का कार्य मार्गदर्शन करना है, लेकिन निर्णय प्रक्रिया में मन, बुद्धि और अहंकार की भूमिका अधिक होती है। इसके अलावा अपराधी का मन लोभ, क्रोध, या द्वेष से भरा हो सकता है, जो आत्मा के संकेतों को दबा देता है। बुद्धि का नैतिक या अमानवीय निर्णय आत्मा के मार्गदर्शन के विपरीत हो सकता है। अहंकार व्यक्ति को यह विश्वास दिला सकता है कि उसके कार्य उचित हैं, भले ही वे समाज के लिए हानिकारक हों। यही नहीं आत्मा के प्रभाव को अक्सर व्यक्ति के सामाजिक परिवेश और परवरिश से भी चुनौती मिलती है । गरीबी, अन्याय, शोषण जैसे कारक अपराध की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे सकते हैं। आत्मा की शक्ति तब कम प्रभावी हो जाती है जब व्यक्ति का वातावरण नैतिकता से परे हो। कई अपराध मानसिक विकारों या आघात के कारण होते हैं। ऐसे मामलों में, व्यक्ति की आत्मा का मार्गदर्शन कमजोर पड़ सकता है, क्योंकि मनोवैज्ञानिक अस्थिरता आत्मा की चेतना को ढक देती है। हालांकि आत्मा की भूमिका अपराध के बाद भी देखी जा सकती है । अपराध के बाद अपराधी में पश्चाताप की भावना जाग्रत होना भी आत्मा की शक्ति का प्रमाण है। आत्मा कभी भी अपने मार्गदर्शन से पीछे नहीं हटती; अपराधी को उसके कार्यों की गंभीरता का अहसास कराना इसका उदाहरण है। उदाहरण के लिए, महर्षि वाल्मीकि का जीवन, जो पहले डाकू थे, लेकिन आत्मा की शक्ति से वे आध्यात्मिक मार्ग की अग्रसर हुए और उन्होंने रामायण की रचना की। इसके अलावा अशोक महान भी आत्मा की शक्ति के कारण ही सही मार्ग की ओर बढ़ सके जिन्होंने कलिंग युद्ध के बाद अपनी क्रूरता के प्रति पश्चाताप किया और बौद्ध धर्म अपनाया। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि आत्मा सार्वभौमिक है और सही दिशा प्रदान करती है, लेकिन इसका प्रभाव व्यक्ति के मन, बुद्धि, और पर्यावरण पर निर्भर करता है। जघन्य अपराधों की जड़ में मानवीय कमजोरियां और परिस्थितियां होती हैं, न कि आत्मा की अनुपस्थिति। यह व्यक्ति के ऊपर है कि वह आत्मा के मार्गदर्शन को सुने या अपनी इच्छाओं और विकृतियों के अधीन हो।


       आत्मा की शक्ति हमेशा मौजूद रहती है, लेकिन इसका उपयोग व्यक्ति के मन, बुद्धि और चेतना के स्तर पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, सूरज हमेशा चमकता है, लेकिन यदि बादल या कोहरा हो, तो उसकी रोशनी और गर्मी का अनुभव कम होता है। इसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी कई परतें होती हैं जैसे - मन (इच्छाओं और भावनाओं का क्षेत्र), बुद्धि (तर्क और निर्णय लेने की शक्ति), अहंकार (आत्म-केन्द्रित प्रवृत्तियों का प्रभाव) । इन परतों के कारण आत्मा के संकेत कमजोर या अनसुने हो सकते हैं। अतः आत्मा की शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता होती है । आत्मा की शक्ति को "जागृत" करने का वास्तविक अर्थ है इन परतों को हटाकर आत्मा के संकेतों को स्पष्ट रूप से महसूस करने की क्षमता विकसित करना व आत्मा और मन के बीच समन्वय स्थापित करना और आत्मा की शक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में लागू करना। आत्मा को जागृत करना और इसे समझना केवल एक आध्यात्मिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन को संतुलित, उद्देश्यपूर्ण और प्रेरणादायक बनाने का माध्यम है।


       अब प्रश्न यह उठता है कि कैसे आत्मा की छुपी हुई शक्ति को जाग्रत कर व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बना सकता है? आत्मा की छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करना एक निरंतर अभ्यास है, जिसमें आत्मनिरीक्षण, संयम, और सकारात्मक दृष्टिकोण शामिल होते हैं। आत्मनिरीक्षण (Self-Reflection) इस प्रक्रिया का पहला चरण है । दिन के अंत में अपने विचारों और कार्यों की समीक्षा करें और जानें कि कौन-से निर्णय आपकी आत्मा के आदर्शों के अनुकूल थे और कौन-से नहीं। आत्मा की शक्ति जाग्रत करने के लिए सच का सामना करना और सुधार की इच्छा रखना आवश्यक है। ध्यान और प्राणायाम आदिकाल से ही आत्मा की शक्ति को महसूस करने और जाग्रत करने के सबसे प्रभावी उपाय रहे हैं। यह मन को शांत करता है और आंतरिक ऊर्जा को व्यवस्थित करता है। नकारात्मक विचारों और भावनाओं से बचें। आत्मा की शक्ति तभी प्रकट होती है जब व्यक्ति अपनी सोच और दृष्टिकोण को सकारात्मक बनाए रखता है। इसके अलावा दूसरों की मदद करना आत्मा को संतुष्टि प्रदान करता है और इसकी शक्ति को जाग्रत करता है। आत्मा की शक्ति को महसूस करने के लिए अपने जीवन में अनुशासन बनाए रखना भी आवश्यक है । अनावश्यक भोग-विलास और व्यर्थ के कार्यों में अपनी ऊर्जा को बर्बाद करने से बचना चाहिए । इस प्रकार इससे न केवल निर्णय लेने की क्षमता बेहतर होती है बल्कि मनोबल और आत्मविश्वास भी बढ़ता है और भावनात्मक स्थिरता और शांति प्राप्त होती है । इसके अलावा शिक्षा व निरंतर स्वाध्याय भी इस दिशा में प्रभावशाली कदम है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2019 में, दुनिया भर में लगभग 970 मिलियन लोग मानसिक विकार से पीड़ित थे, जिनमें चिंता और अवसाद सबसे आम थे। ध्यातव्य है कि आत्मा की शक्ति में इस समस्या के समाधान हेतु व्यापक संभावनाएं विद्यमान है । 


         निष्कर्षतः आत्मा की छुपी हुई शक्ति व्यक्ति के जीवन को एक नई दिशा प्रदान करती है। यह शक्ति न केवल उसके भीतर के नैतिक और भावनात्मक द्वंद्व को हल करती है, बल्कि उसे एक बेहतर इंसान बनने में भी मदद करती है। आत्मा की शक्ति से प्रेरित होकर व्यक्ति जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन, शांति, और सकारात्मकता स्थापित कर सकता है। इस शक्ति का सही उपयोग समाज में स्थिरता, विकास, और समरसता लाने में भी सहायक हो सकता है। आत्मा की शक्ति से प्रेरित होकर महापुरुषों ने समाज और मानवता के लिए अतुलनीय योगदान दिया है। आत्मा की शक्ति का प्रभावी उपयोग करके व्यक्ति बेहतर संबंध बना सकता है, दूसरों को प्रेरित कर सकता है, और नवाचार के नए आयाम स्थापित कर सकता है। यह शक्ति समाज को सहिष्णु और दयालु बनाने में सहायक हो सकती है जिससे समाज की कई बड़ी समस्याएं हल हो सकती हैं और निश्चित ही अपराध की दर में भी गिरावट आ सकती है । महात्मा गांधी जी का भी मानना था कि आत्मा वह दीपक है जो अंधकार में भी मार्ग दिखा सकता है। अंतत : आत्मा की शक्ति के संबंध में कहा जा सकता है : -


यह सागर की गहराई है,

पर्वत की ऊँचाई है।

और मन की गुफाओं में छुपी


By Ayush Sharma

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