top of page

आरज़ू

By Dr. Tripti Mittal


रात के साए में तेरी हर बात याद आती है

तू महकाने की शराब सी हर दर्द की दवा बन जाती है


कितने अरसे से तेरी आवाज़ भी अब तो सुनी नहीं

दो पल तुझे पाने की आरज़ू तो कहकशां बन जाती है


वो रिश्ता बेनाम होकर भी ना जाने रखता है क्या वाबस्तगी

मिल जाता गर नाम तो एक हसीन दास्ताँ कहलाई जाती है



फासले तो हैं दरमियाँ फिर भी तेरी आहट सुनाई देती है

ना जाने क्यों तेरी मीठी सी मुस्कान मेरे लबों पर सज जाती है


तुझसे कुरबत बन जाए ना कहीं हमारी तबाही का सबब

आज भी ख्वाबों में विसाल की गुफ्तगू हमें तड़पा जाती है


By Dr. Tripti Mittal




0 views0 comments

Recent Posts

See All

Love

By Hemant Kumar जब जब इस मोड़ मुडा हूं मैं हर दफा मोहब्बत में टूट कर के जुड़ा हूं मैं शिक़ायत नहीं है जिसने तोड़ा मुझको टुकड़े-टुकड़े किय...

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page