By Gaurav Abrol
शुष्क वृक्षों की छाया में कोपल नव मुस्काएगी बंजर धरती के दामन में कलियां भी खिल जाएंगी विचलित भावों से आगे अब मुझसे है मेरा संवाद गूंज उठेगा अब जीवन में, प्रबल हुआ आशा का नाद l गूंज उठेगा अब जीवन में ,प्रबल हुआ आशा का नाद ll
बूंदों की छलनी में छुप
किरणे जब शर्माएंगी
बोझिल होती आखियां भी तब
अद्मय चमक दिखलाएंगी
हार जीत का प्रश्न नहीं
अब जीवन हुआ मेरा अपवाद
गूंज उठेगा अब जीवन में, प्रबल हुआ आशा का नाद l
गूंज उठेगा अब जीवन में ,प्रबल हुआ आशा का नाद ll
जीवन की पथरीली राहों में खुशियां मखमल सी आएँगी चोटिल मन के पांवों को वे दूर तलक सहलाएंगी हालातों को परे हटा अब जाग उठा मुझमे प्रहलाद गूंज उठेगा अब जीवन में, प्रबल हुआ आशा का नाद l गूंज उठेगा अब जीवन में ,प्रबल हुआ आशा का नाद ll
सहज सरल या जटिल विरल प्रश्न स्वयं को सुलझायेगा उन्नत विकसित ओजपूर्ण कल को ये पल रच जायेगा आप मैं का भेद मिटा स्वच्छन्द हुआ अपना संवाद l
गूंज उठेगा अब जीवन में, प्रबल हुआ आशा का नाद l गूंज उठेगा अब जीवन में ,प्रबल हुआ आशा का नाद ll
By Gaurav Abrol
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