By Garima Dixit
तुम इंसान हो इंसान बन कर चलो,
तुम इंसान हो इंसानियत के रंग में ढलो |
हो चाहे कितनी भी संपत्ति और पे ,
उनसे तुम ना जलो ,
बेवजह दूसरों से न लड़ो ,
इंसान के है रूप लाख ,
सच्चाई की कर तू तलाश ,
मिथ्य और कपटता से ले तू तलाख ,
अपने अंदर के पशुत्व का कर दे तू नाश ,
अपनी श्रेष्ठता से चूम ले तू आकाश ,
इंसानियत के नाते कर इंसान से तू प्यार ,
खूबसूरत है ये ज़िंदगी ,
बस कमी है प्यार की ,
तुम प्यार बाट कर प्यार बटोर ते चलो ,
तुम इंसान हो इंसान बन कर चलो ,
तुम इंसान हो इंसानियत के रंग में ढलो |
By Garima Dixit
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