By Harsh Chaudhary
इधर-उधर की बातें,
करता रहता हूं मैं आजकल।
पता नहीं किस दुनिया में,
कौन से ख्यालों में रहता हूं मैं आजकल।
सब कुछ अधूरा सा लगता है,
दिल में एक खालीपन सा बसा है।
सब कुछ उजड़ा सा लगता है,
हर मोड़ पर जैसे कोई साया छिपा है।
सब कुछ बदला हुआ सा लगता है,
वक्त के साथ हर रिश्ता भी फिसलता सा लगता है आजकल।
सब कुछ बिखरा हुआ सा लगता है,
जैसे कोई हसरत टूटकर गिर पड़ी हो मेरी आजकल।
बहुत अकेला सा, बहुत परेशान हूं मैं आजकल,
भीड़ में होकर जैसे खोया हूं मैं।
पता नहीं क्यों इधर-उधर की बातें करता हूं मैं आजकल,
शायद दिल का बोझ हल्का करने की चाहत रखता हूं मैं।
रातों की नींद भी अब चुपचाप गुजर जाती है,
सपनों में भी एक खामोशी सी छा जाती है।
कोई जवाब नहीं मिलता इन सवालों का,
बस अपनी ही उलझनों में घिरा हूं मैं आजकल।
इधर-उधर की बातें,
करता रहता हूं मैं आजकल।
पता नहीं किस दुनिया में,
कौन से ख्यालों में रहता हूं मैं आजकल।
By Harsh Chaudhary
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