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इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितनी उन्नति कर लेते हैं, आप बुनियादी तौर पर दूसरों के बराबर ही हैं ।

Updated: Jan 17




By Ayush Sharma


        समाज में एक सामान्य धारणा है कि उन्नति के साथ व्यक्ति की पहचान बदल जाती है। लोग मानते हैं कि अगर आप अमीर हो गए, तो आप समाज में उच्च दर्जे के हो जाते हैं, और यदि आपके पास शक्ति या प्रतिष्ठा है, तो आप दूसरों से ऊपर हो जाते हैं। यह एक गहरी भ्रांति है, क्योंकि उन्नति कभी भी हमारी आंतरिक समानता को प्रभावित नहीं कर सकती। भौतिक उन्नति का व्यक्ति की मानवता से कोई संबंध नहीं होता। चाहे किसी का सामाजिक दर्जा ऊँचा हो या न हो, हम सभी बुनियादी तौर पर समान ही हैं। समाज में एक व्यक्ति की सफलता अक्सर बाहरी मानकों से मापी जाती है जैसे शक्ति, धन व प्रतिष्ठा आदि से। लेकिन हम पाते हैं कि हमारे अंदर की मानवता ही है जो हमें दूसरों से अलग नहीं होने देती। हमें स्वयं को बेहतर सामाजिक स्थिति में होने के बावजूद दूसरों के समान ही समझना चाहिए, क्योंकि बुनियादी तौर पर हम सभी इंसान ही हैं।


      अब यहां इस बात का विश्लेषण करना आवश्यक हो जाता है कि व्यापक उन्नति के बावजूद बुनियादी तौर पर हम दूसरों के बराबर कैसे हैं। वास्तव में मानवीय अस्तित्व का सार्वभौमिक सत्य ही इसे संभव बनाता है । हर व्यक्ति जन्म, मृत्यु, और प्रकृति की सीमाओं के अधीन है। चाहे कोई कितना भी अमीर, शक्तिशाली, या प्रसिद्ध क्यों न हो जाए, सभी को सांस लेने, भोजन करने और एक दिन मरने की वास्तविकता का सामना करना ही पड़ता है। उन्नति केवल बाहरी रूप से हमारी स्थिति बदलती है; यह हमारी बुनियादी वास्तविकता को प्रभावित नहीं करती। एक अरबपति और एक गरीब किसान दोनों को ही मृत्यु का सामना करना होगा। क्या आपकी संपत्ति या पद आपको प्राकृतिक आपदाओं (जैसे भूकंप, बाढ़, भूस्खलन, सुनामी आदि) से बचा सकता है? नहीं। यह स्पष्ट करता है कि प्रकृति के सामने सभी बराबर हैं।


       इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत मानसिक व शारीरिक आवश्यकताएँ समान हैं । सभी मनुष्यों की मूलभूत आवश्यकताएं समान हैं: जैसे भोजन, पानी, नींद, सुरक्षा आदि। भले ही कोई कितनी भी उन्नति कर ले, इन जरूरतों से मुक्त नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए भोजन को ही लिया जाए, एक करोड़पति किसी 5-स्टार होटल में खाना खाए और एक मजदूर सादा भोजन करे परंतु दोनों की भूख समान है। इसी प्रकार नींद को लिया जा सकता है, किसी आलीशान बिस्तर पर सोने वाला व्यक्ति और एक फुटपाथ पर सोने वाला व्यक्ति, दोनों के लिए नींद की मूलभूत आवश्यकता समान ही रहती है। उन्नति केवल इन जरूरतों को अधिक सुविधाजनक बना सकती है, लेकिन इसे पूरी तरह समाप्त नहीं कर सकती।


         इसके अलावा मनुष्य के भावनात्मक अनुभव जैसे खुशी, दुःख, प्रेम और डर समान होते हैं। उन्नति इन्हें बदल नहीं सकती। उदाहरण के लिए, एक सफल अभिनेता भी अकेलेपन और अवसाद का शिकार हो सकता है। इसी प्रकार एक गरीब महिला भी अपने बच्चे के लिए वैसा ही प्रेम महसूस करती है जैसा कि कोई अमीर महिला। उन्नति इन भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सकती। उदाहरण के लिए, एक शक्तिशाली व्यक्ति को भी हार का उतना ही डर होता है जितना कि एक साधारण व्यक्ति को। इस बात के पर्याप्त उदाहरण देखे जा सकते हैं कि प्रसिद्ध हस्तियां (जैसे रॉबिन विलियम्स) जिनके पास धन और प्रसिद्धि थी, अवसाद से जूझते हुए आत्महत्या कर बैठे। यह दर्शाता है कि भावनात्मक अनुभव उन्नति से अछूते रहते हैं।


           यही नहीं कानून, नैतिकता, और सामाजिक संरचना भी सभी पर समान रूप से लागू होती हैं। उदाहरण के लिए, एक सामान्य नागरिक और एक राष्ट्रपति, दोनों को ही कानून का पालन करना होता है। हमारी उन्नति हमें समाज में अलग दिखा सकती है लेकिन इसके बावजूद बुनियादी नागरिक अधिकार और कर्तव्य हर व्यक्ति के लिए समान ही होते हैं। आप चाहे कितने ही प्रभावशाली क्यों न हों, अगर आप ट्रैफिक नियम तोड़ेंगे तो आपको जुर्माना देना होगा बशर्ते यदि उस समाज में न्याय व्यवस्था सही प्रकार से लागू है। इसी प्रकार नैतिक मूल्य जैसे ईमानदारी, करुणा, सहानुभूति आदि सभी पर समान रूप से लागू होते है। यही नहीं प्रत्येक व्यक्ति की किसी न किसी स्तर पर जबावदेही भी तय होती है। इसके अलावा समाज के नियम भी समाज में रहने वाले लोगों पर समान रूप से लागू होते हैं बशर्ते समाज इन्हें सही तरीके से व ईमानदारी से लागू करे। जो संबंध या रिश्ते अमीर व्यक्तियों के मध्य विकसित होते हैं वही संबंध गरीब व्यक्तियों के मध्य भी विकसित होते हैं । 

            इसी प्रकार आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो आत्मा की दृष्टि से भी सभी प्राणी समान हैं। आत्मा न जाति का भेद करती है, न वर्ग का भेद करती है और न ही शक्ति का भेद करती है। चाहे कोई कितनी भी ऊँचाई पर क्यों न पहुंच जाए, आत्मा सभी में समान रहती है। आत्मा का कोई वर्ग, स्थिति, या पद नहीं होता। भक्ति काल में इस अवधारणा को व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था कि जब आप ध्यान करते हैं या ईश्वर के सामने झुकते हैं, तो आपकी पदवी मायने नहीं रखती; केवल आपका समर्पण ही महत्वपूर्ण होता है।


           इसके अतिरिक्त प्रकृति और समय के नियम किसी के लिए पक्षपाती नहीं होते। ये सभी पर समान रूप से लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई महामारी (जैसे COVID-19) आती है, तो वह अमीर और गरीब के बीच भेदभाव नहीं करती। चाहे आप कितनी भी उन्नति कर लें, आप समय की पकड़ में हैं। कोई भी अपनी उम्र बढ़ने या बीमारियों से बच नहीं सकता। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन में 24 घंटे ही मिलते हैं चाहे वह अमीर हो या गरीब। प्रत्येक व्यक्ति मौसम की समान स्थितियों को महसूस करता है। 


       भौतिक उन्नति केवल बाहरी पहचान को बदलती है, लेकिन आत्मिक मूल्य सभी के लिए समान रहते हैं। उदाहरण के लिए, अब्दुल कलाम, राष्ट्रपति होने के बावजूद, साधारण जीवन जीने में विश्वास रखते थे। इसी प्रकार मदर टेरेसा ने अपनी करुणा से दिखाया कि भौतिक सफलता के बजाय दूसरों की सेवा महत्वपूर्ण है। आप एक अच्छा इंसान बनकर दूसरों की भलाई कर सकते हैं, चाहे आपकी उन्नति किसी भी स्तर पर हो। परोपकार की भावना किसी उन्नति की मोहताज नहीं होती ।


        वस्तुतः बुनियादी समानता की यह अवधारणा केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही लागू नहीं होती बल्कि राष्ट्र व समाज पर भी लागू होती है । एक राष्ट्र चाहे जितनी भी उन्नति कर ले वह स्वयं और उसके लोगों की भलाई के लिए ही कार्य करेगा और लोगों की भलाई या उनमें खुशहाली का स्तर राष्ट्र की उन्नति से तय नहीं होता । इसका उदाहरण वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट में आसानी से देखा जा सकता है जहां सबसे शक्तिशाली राष्ट्र या सर्वाधिक उन्नत राष्ट्र उच्च पायदान पर नहीं है बल्कि फिनलैंड व डेनमार्क जैसे छोटे राष्ट्र उच्च पायदान पर हैं । 


       निष्कर्षतः बुनियादी समानता की यह अवधारणा किसी के भी अहं को तोड़ने के लिए ही पर्याप्त नहीं है बल्कि यह हमें यह भी बताती है कि भौतिक उन्नति केवल बाहरी पहचान को बदलती है, लेकिन आत्मिक मूल्य सभी के लिए समान रहते हैं। चाहे आप कितनी भी ऊंचाई पर पहुंच जाएं, आपकी मानवता, आपकी भावनाएं, और आपके अस्तित्व का मूल सभी के साथ जुड़ा हुआ है। इस सच्चाई को स्वीकार करना न केवल हमारी विनम्रता को बढ़ाता है, बल्कि समाज में सामूहिक सम्मान और एकता को भी सुदृढ़ करता है। उन्नति का अंतिम लक्ष्य यही होना चाहिए कि वह हमारी बुनियादी समानता को और गहरा करे, न कि उसे नष्ट करे। इतिहास उनके द्वारा नहीं लिखा गया है जिन्होंने अपने लिए सर्वाधिक उन्नति की है बल्कि उनके द्वारा लिखा गया है जिन्होंने दूसरों के लिए उन्नति की है और दूसरों की समानता के लिए प्रयास किए हैं । सच्ची उन्नति केवल व्यक्तिगत उपलब्धियों में नहीं, बल्कि दूसरों के साथ समानता और मानवता के आदर्शों को बनाए रखने में है। हम सब अलग हो सकते हैं, पर समान रूप से मूल्यवान हैं। अंततः कहा जा सकता है :


"वो मंज़िलों का नशा कुछ पल का है,

सच में तो सबका घर एक दलदल का है।”


By Ayush Sharma





 
 
 

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Nihal Dubey
Nihal Dubey
14 de fev.
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❤️❤️❤️🙏

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Anubhav Sharma
Anubhav Sharma
14 de fev.
Avaliado com 5 de 5 estrelas.

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Shivam Sarathe
Shivam Sarathe
14 de fev.
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Accha hai

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pankaj Patel
pankaj Patel
14 de fev.
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Good 👍

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Vineet Balodiv
Vineet Balodiv
14 de fev.
Avaliado com 5 de 5 estrelas.

Great job 👍

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