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उजाड़ा घोंसला 'चिरैया' का

Updated: Feb 11



By Santosh Kanoujia


“परिंदो के ना जाने, कितने आशियाने मिटे हैं

इंसानी सुविधाओं मे,जब जब पेड कटे हैं”


तिनका तिनका धूप बारिशों में, ढूँढने है जाती 

तब जाकर चिरैया घोंसला, बना है पाती 

हमारे सुगम जीवन की कीमत, 

कितने पक्षियों का घर, उजाड है आती ।


दाना चुगने को चिरैया, सुबह घोंसले से उड़ती है

दाने दाने को भटक कर, जब घर को मुड़ती है 

लौटी तो देखा सब उजडा हुआ था,

और अपनों की कोई खबर, भी नहीं मिलती है।


“सोचना कभी तुम्हे, कुछ ऐसा देखना पड़ जाए 

तुम बेखबर, तुम्हारे अपने बेघर और तुम्हारा सब उजड जाए”


खैर, बेघर परिंदों की आहों की मत सोचो

अपनो के बीच, अपनो की सासों की सोच लेना

प्रकृति से जुड़ा है सभी का जीवन,

उजाडना नहीं, संवारना सीख लेना..पेड़ो को काटना नहीं, उगाना सीख लेना ।


By Santosh Kanoujia



 
 
 

11件のコメント

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Sunder Lal
Sunder Lal
2月10日
5つ星のうち5と評価されています。

प्रकृति चिंतन कराती इस कविता को 🙏

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5つ星のうち5と評価されています。

इस कविता की एक एक पंक्ति आपकी, कविता का भाव व्यक्त करती है बहुत ही संवादशील कविता है, आपकी इस रचना के लिए हार्दिक बधाई और आपकी नई कविता का इंतज़ार भी है

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5つ星のうち5と評価されています。

Your choice of words is a perfect example of perfection..keep it up!

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sumit preeti
sumit preeti
1月22日
5つ星のうち5と評価されています。

बहुत खूब बहुत खूब 👌🏻

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Mahi Gautam
Mahi Gautam
1月21日
5つ星のうち5と評価されています。

This poem is so inspirational for all humans And we should literally save our environment great work done by you big brother. May u achieve everything you want 🙏

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