उम्मीद
- Hashtag Kalakar
- Jan 11
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Updated: Jul 16
By Sunita Patil
ए उम्मीद कहाँ से आई हो,
इतना जजबा, इतनी ताकद कहाँ से लाई हो।
तुफानों ने तोड़ा,
जलजलोंने जड़ से उखाडा,
जख्मों पर रेहम ना आया,
किडे मकोड़ो ने भी नोचा,
पिंजर होकर पड़े रहे,
जूजते हुए आती जाती हवाओ से,
कोई नहीं था।
कोई नहीं था।
तब भी तूम थी।
दामन पकड के ज़िन्दगी का,
आस-सी बह रही थी,
उन्ही पिंजर आस्थयों में,
ऋतू ओं का आना जाना रहा,
फिर मौसम बदला,
पर तुम बनी रहीं।
इक बूंद उम्मीद ही दवा बनी।
वाह भगवान क्या कहें? बधाई...!
तू है इसलिए बहार आई।
मंद मुस्काए हम भी,
क्योंकी दे नहीं सकते पूरा श्रेय भी,
कैसे छोड़ सकते दामन भी,
ये तख़्त ताज और जीता हुआ पलभी,
जो मौसम की तरह है,
इक तु ही है साँस की तरह है,
तुमसे ही ज़िन्दगी क़ायम है।
तुमसे ही ज़िन्दगी क़ायम है।
By Sunita Patil

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