By Kishor Ramchandra Danake
आज रविवार का दिन था। बस्ती में दुःख का माहोल तो था लेकिन फिर भी लोग अपने अपने तैयारी में लगे हुए थे। क्योंकि आज चर्च जाने का दिन था। मैरी के बंगले में भी शांति ही थी। सुबह के ९ बजे थे लेकिन फिर भी आज मैरी सो रही थी।
रोशनी मैरी को देखने आई क्योंकि वह उसे इस रविवार अपने साथ ले जाना चाहती थीं। उसने मैरी को उठाया।
“मैडम क्या हुआ? ठीक तो हो ना आप? आपकी आंखे तो बोहोत छोटी दिख रही है। “, रोशनी ने कहा।
मैरी का चेहरा बोहोत ही उतर गया था। उसके हाथ पैर पहले से अब थोड़े से कमजोर दिखने लगे थे।
“थोडे हाथ पैर दर्द कर रहे है। नींद भी पूरी नही हुई और सिर भी दर्द कर रहा है।“, मैरी ने थके आवाज में कहा।
“तो चलो हम अस्पताल चलते है।“, रोशनी ने कहा।
मैरी ने कहा, “अरे नहीं उसकी कोई जरूरत नहीं है। बस थोड़ा सा आराम करती हूं और फिर दोपहर तक सब ठीक हो जाएगा। वैसे तुम कहा जा रहे हो?”
“प्रार्थना के लिए।“, रोशनी ने कहा।
“अरे हां आज तो रविवार है। मैं भी आना चाहती हूं। लेकिन मेरा शरीर मुझे साथ नही दे रहा है। मेरे खयाल से आज भी तुम्हे मेरे अलावा ही जाना पड़ेगा। मेरी फिक्र करने की कोई बात नही।“, मैरी ने कहा।
रोशनी ने कहा, “अच्छा ठीक है तो आप आराम करो। हम दोपहर को मिलते है।“
“हां ठीक है रोशनी।“, मैरी ने कहा।
फिर रोशनी वहा से चली गई। श्रीकांत और उसके परिवार की भी तैयारी हो चुकी थी। अक्षदा अपने सपने का जिक्र प्रज्ञा से कर रही थी जो उसने कल रात को देखा था। वो थोड़ी सी डरी हुई थी।
“रानी अब मुझे डर लगने लगा है। क्या किसी के साथ आज बुरा होगा? तू आज फादर से बात करके अपने सपनों के बारे में उन्हे सब बता दे।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां पनू! मुझे भी यही लगता है।“, अक्षदा ने कहा।
वे सब बंगले से बाहर निकले। अक्षदा ने सोचा की मैडम के साथ थोड़ी सी बात करे लेकिन वह सोई हुई थी इसलिए उसने सोचा की दोपहर में बात करेंगे। फिर श्रीकांत और उसका परिवार अपनी मोटर साइकिल पर निकल गए।
कुछ बच्चे हिमेश की कार में तो कुछ राजेंद्र की कार में बैठ गए। अब बस्ती पूरी सुनसान लग रही थी। राजेंद्र की पत्नी उज्ज्वला, उसकी बड़ी बेटी रेशमा, इठाबाई, दादाभाऊ, लीलाबाई और श्रावण ही बस्ती पर थे। खाट पर दगड़ू आराम कर रहा था। उसे अब अच्छा महसूस हो रहा था। लेकिन वह अभी भी बीच बीच में बड़बड़ाता रहता था। लेकिन उसकी बातों में अब और थोड़ा सा डर बढ़ गया था। श्रावण और इठाबाई वही खाट के पास बैठे हुए थे। उज्ज्वला अपने काम में लगी थी और रेशमा अपनी पढ़ाई में। दादाभाऊ तो अपने खेत में चक्कर लगाने गए थे और लीलाबाई बाहर आंगन में बैठी हुई थी।
श्रावण ने धीमी आवाज में इठाबाई से कहा, “क्या तुम्हे यह सब देखकर डर नही लग रहा है?”
“कैसा डर?”, इठाबाई ने कहा।
“देखो मुझे लगता है इन सब बातों से वो सुमित्रा की बेटी का कोई वास्ता है। शांताराम की मौत से और दगड़ू का कुंवे में कूदने से। अब देखो दगडु की आवाज से लग रहा है जैसे वह और भी जादा डरा हुआ महसूस कर रहा हैं।“, श्रावण ने कहा।
श्रावण की इस बात से इठाबाई भी चौंक गई। उसे भी अब थोड़ी सी शंका महसूस होने लगी।
“हां। मुझे भी अब शक हो रहा है। क्या तुम्हे लगता है की वह औरत भी जादू टोना करती होगी? ये लोग हमे चैन से जिंदा नहीं रहने दे रहे है।“, इठाबाई ने कहा।
“पता नहीं। लेकिन मुझे लगता है की कोई उसका साथ दे रहा है। कोई तो हैं जो उसके साथ है। हो सकता है सुमित्रा की आत्मा हो।“, श्रावण ने कहा।
“क्या कह रहे हो आप?”, इठाबाई ने कहा।
“हां मुझे यही लगता है। क्योंकि देखो जिस दिन वो यहां आई उस बुधवार के दिन प्रार्थना खत्म होने के बाद वह फादर के साथ बाते कर रही थी तब उसने कहा था की उसे आवाजे सुनाई देती है। मुझे लगता है कोई उसके साथ पहले से ही था।“, श्रावण ने कहा।
“तो अगर ऐसा है तो हम फिर से खतरे में है। क्या अब फिर से हमे उस के साथ वही करना पड़ेगा जो उसकी मां के साथ किया था? हमारे अब परिवार है यहां। हम बूढ़े हो चुके है। उनके साथ कुछ बुरा नही होना चाहिए। सुमित्रा को हमारे बारे में पता चल गया था।“, इठाबाई ने कहा। और दगड़ू की तरफ देखकर कहा, “मरने से पहले उस चुड़ैल ने इन्हे भी शाप दिया था। देखो कैसी हालत है इनकी अब।“ और अपनी साड़ी को मूंह पर लगाकर रोने लगी।
“इसलिए मैं चाहता हु की तुम उसके घर जाओ। उसके साथ बाते करो। उसकी पुरानी यादें ताजा करो और देखो उसे की वह कैसे बाते करती है। हमे कुछ पता चल जाए की इसके पीछे वही है। फिर हम देखते है आगे क्या करना है? मैं एक तांत्रिक को जानता हूं। वो आदमी है ना जो हाथ की रेखाएं देखकर झोली भरता है उसका गुरु है वो। वह हमारी मदद जरूर करेगा। लेकिन वह हमारे बारे में कुछ भी नही जानता की हम कहा से है और कौन है। अगर पता चल गया तो वह हमारी मदद नहीं करेगा। वेलान कबीले के लोग भी उसे ढूंढ रहे है। पता नही किसलिए। लेकिन हमे तो इन सबसे दूर ही रहना है।“, श्रावण ने कहा।
अगर शंकर भाई साहब और उनकी पत्नी उर्मिला साथ होते तो यह सब झेलने की नौबत नहीं आतीं।“, इठाबाई ने कहा।
“हां। अब जो हुआ सो हुआ। लेकिन अब हमे हमारे बस्ती के बारे में सोचना है।“, श्रावण ने कहा।
“हां। मैं आज ही उसके पास जाकर उससे बाते करती हूं। फिर देखते है।“, इठाबाई ने कहा। फिर वह वहा से उठकर बाहर चली गई और लीलाबाई के साथ बैठ गई। बाहर बैठकर उसकी नजरें बंगले की ओर ही थी।
श्रावण अंदर अपने भाई के पास ही बैठा था।
मैरी ने अपने घर की खिड़की खोली। उसी वक्त इठाबाई की नजर मैरी पर पड़ गई। इठाबाई ने देखा की मैरी अपने कमरे में ही है। तो वह उठ गई और बंगले की ओर चलने लगी। मैरी ने अपना बेड ठीक किया और फिर से वह अपने बेड पर ही बैठ गई। उसकी आंखे बोहोत ही छोटी और लाल हो गई थी। जैसे उन्हे ठीक से आराम ना मिला हो। और उसका चेहरा भी उतरा हुआ था।
इठाबाई मैरी के कमरे के बाहर आकर खड़ी रही। मैरी ने अचानक से उसे देखा।
“अरे आओ आओ चाची। अंदर आओ।“, मैरी ने कहा।
अपनी लाठी हाथ में लिए इठाबाई अंदर आ गई। उसने अपनी लाठी नीचे रखी और वह पास रखे कुर्सी पर बैठ गई।
“कैसे हो चाची आप?”, मैरी ने कहा।
“ठीक हूं।“, इठाबाई ने कहा।
“बोहोत दुःख हो रहा है। शांताराम चाचा अचानक से गुजर गए और कल दगड़ू चाचा के साथ ऐसा हादसा।“, मैरी ने दुःख के साथ कहा। वो तो अब मैरी थी।
“हां। दुःख तो हो रहा है। लेकिन इससे भी जादा दुखभरी हालातों से गुजरे है हम तो ये भी सह लेंगे।“, इठाबाई ने कहा।
“मैं आपके लिए चाय बनाती हूं अभी।“, मैरी ने कहा और वह उठ गई। उसका गैस उसने खिड़की के पास में ही रखा था।
“मैं यही काम करती थी। इसी घर में। तुम्हारे दादाजी और दादी की सेवा। तुम्हारे दादाजी जब बीमार थे तब मेरे पति ही उनका सारा खयाल रखते थे। लेकिन वे एक दिन गुजर गए। और तुम्हारी दादी का मैं ही खयाल रखती थी। वो जब बीमार थी तब मैं ही उनके साथ रहती थी। लेकिन ईश्वर को हमारा अच्छा दिखा नही इसलिए उसे भी अपने पास बुला लिया। तब तो तुम छोटी थी। स्कूल जाती थी।“, इठाबाई ने कहा।
“हां। मुझे थोड़ा थोड़ा याद है की आप यहां घर में मेरी मां को मदद करने आते थे। सुंदरा चाची भी आती थी।“, मैरी ने कहा। उसने अब पतीले में पानी, शक्कर और चायपत्ती डाल दी और पतीले को गैस पर चढ़ा दिया।
“वह दुःखद हादसा हम कभी नही भूल सकते। तुम्हारी मां और पिताजी। वो हमसे बोहोत प्यार करते थे और हमारा खयाल रखते थे। हम भी उनसे बोहोत प्यार करते थे और उनके वफादार थे।“, इठाबाई ने कहा। और वह इंतजार करने लगी मैरी के चेहरे को और उसकी प्रतिक्रिया को देखने के लिए। इठाबाई की यह बात सुनते ही मैरी पर सुलेखा हाँवी हो गई। वह अब अपने आगे की तरफ खिड़की के बाहर देख रही थी। उसके आंखों में धीरे धीरे बदलाव आ रहा था। उसके चेहरे के भाव बोहोत ही गुस्से से भर गए थे। अब वह कुछ पुटपुटाने लगीं। उसके होंठ हिल रहे थे। आवाज नही आ रही थी लेकिन वह मन ही मन कुछ बोल रही थी। उसके हाथ थरथराने लगे थे। उसकी आंखे पानी से भर गई। उसने अपने आंख को छूंवा और एक बूंद छुपके से पतीले में डाल दी।
और उसने धीमी आवाज में कहा, “झूठ!”
“कुछ कहा तुमने?”, इठाबाई ने कहा।
अब सुलेखा ने अपना सारा गुस्सा दबाकर रखा। क्योंकि उसे याद था की जल्दबाजी में और अपनी लापरवाही की वजह से उसने अपनी बेटी को खो दिया था। और उसका एक महत्वपूर्ण काम भी अधूरा ही रह गया था। और वह यह गलती फिर से नही दोहराना चाहती थी।
उसने शांत आवाज में कहा, “हां मुझे पता है। मुझे थोड़ा थोड़ा याद है। आप हमारे साथ कैसे रहते थे। सब एकदम प्यार से और खुशी से।“
अब सुलेखा ने अपना नियंत्रण मैरी को दे दिया।
मैरी ने चाय कप में डाली और चाय इठाबाई को दे दी। मैरी बोहोत परेशान दिख रही थी।
“तुम नही लोगी चाय?”, इठाबाई ने कहा।
“अ – नही मैने अभितक अपना मुंह नही धोया।“, मैरी ने कहा।
चाय का एक घूंट पीकर इठाबाई ने कहा, “बोहोत परेशान दिख रही हो तुम। सब ठीक है ना या कोई तकलीफ है?”
“नही सब ठीक है। बस ठीक से नींद नही आ रही है। बाकी कुछ नही।“, मैरी ने कहा।
“उस औरत की आवाजे सुनाई देती है क्या अभी भी?”, इठाबाई ने धीमी आवाज में कहा।
मैरी चौंक गई। उसने कहा, “आपको कैसे पता मुझे आवाजे सुनाई देती है?”
“उस दिन तुम फादर को बता रही थी ना तो मैं पास में ही खड़ी थी।“, इठाबाई ने कहा।
“हां! कभी कभी सुनाई देती है। लेकिन अब बोहोत कम हो गया हैं।“, मैरी ने कतराकर कहा।
चाय खत्म हुई। इठाबाई ने अपना चाय का कप नीचे रख दिया।
“मुझे लगता है की वो आवाज किसी चुड़ैल की ही होगी। क्योंकि मैंने बोहोत पहले सुना था की चुड़ैल दूसरों को अपनी आवाज से बहकाती और डराती है।“, इठाबाई ने कहा। उसकी नजर अब मैरी के चेहरे पर ही थी।
मैरी के चेहरे पर अब बदलाव आने शुरू हुए थे। उसकी आंखे लाल हो रही थी। सुलेखा अंदर से बोहोत ही गुस्सा थी जैसे वह अब उसे मार डालेगी। लेकिन उसने अंदर से खुद को रोक रखा था। लेकिन उसका प्रभाव मैरी के चेहरे पर दिख रहा था। मैरी की आंखे यहां वहा देख रही थी। उसे इठाबाई की ओर देखना मुश्किल हो रहा था। इठाबाई को यह बदलाव महसूस हुआ।
“पता नही क्या है। लेकिन मैं सोच रही हूं की इस आवाज के बारे में फादर को फिर से बताऊं।“, मैरी ने हिचकिचाते हुए कहा।
“हां। तुम्हे बात करनी चाहिए।“, इठाबाई ने कहा। “अच्छा तो अब मैं चलती हु।“
मैरी ने कहा, “हां ठीक है। खयाल रखो अपना।“
फिर इठाबाई ने अपनी लाठी ली और वह धीरे धीरे घर के बाहर चल पड़ी।
मैरी उठ गई और उसने अपनी खिड़की से इठाबाई को जाते हुए देखा। उसके चेहरे के भाव फिर से बदल गए। उसकी आंखों में भी बदलाव आया। सुलेखा अब मैरी पर हांवी हो गई थी। वह धीरे धीरे हंसने लगी। यह हंसी खौफ भरी तो थी लेकिन इसमें एक खुशी थी। जैसे उसे जो चाहिए वह उसने हासिल किया हो।
“लो नरक के लिए एक और तोहफा।“, सुलेखा ने कहा। और वह बेड पर लेट गई।
श्रावण राजेंद्र के घर के बाहर लीलाबाई और दादाभाऊ के साथ ही बैठा हुआ था। दादाभाऊ खेत से लौट आया था।
इठाबाई भी उनके पास आई और बैठ गई। थोड़ी देर बाद दादाभाऊ फिर से खेत में चला गया। लिलाबाई अंदर जाकर दगड़ू के पास बैठ गई। बाहर आंगन में सिर्फ श्रावण और इठाबाई ही बैठे थे।
“क्या हुआ? कुछ पता चला?”, श्रावण ने कहा।
“मुझे लगता है कुछ तो है शायद। कोई तो उसपर हांवी है। क्योंकि जब मैंने चुड़ैल की आवाज सुनाई देती होगी ऐसा कहा तब वह बड़ा ही अजीब बर्ताव कर रही थी। किसी का साया है उसपर मुझे ऐसा महसूस हुआ। लेकिन पक्का तो कुछ नहीं कह सकती।“, इठाबाई ने कहा।
“अच्छा तो मुझे उस तांत्रिक से बात करनी ही पड़ेगी। मैं कल ही उसके पास जाता हूं।“, श्रावण ने कहा।
उसी वक्त इठाबाई ने अचानक से अपने पेट पर हाथ रखा। उसे अजीब सा महसूस होने लगा।
श्रावण ने कहा, “क्या हुआ? आप ठीक तो हो ना?” वह थोड़ा डर गया।
उसी वक्त इठाबाई को उल्टी हुई। वह अब जोर लगाने लगी। वह हांफने लगी। दम खाने लगी। उसकी सांस फूल रही थी। उसने फिर से उल्टी की। श्रावण ने रेशमा को और उज्ज्वला को आवाज दी।
वे दोनो बाहर आई। फिर उज्ज्वला ने पानी लाया। और वह इठाबाई के पीट पर से हाथ फिराने लगी। इठाबाई ने पानी पिया लेकिन उल्टियां फिर भी हो रही थी। उज्ज्वला ने तुरंत ही राजेंद्र को फोन किया। श्रावण को बोहोत चिंता और डर महसूस होने लगा था। वह रोने लग गया। उल्टियां होने से तो कोई इतना नही डरता। लेकिन पिछली घटी कुछ घटनाओं ने उन्हें और भी डरा दिया था। दादाभाऊ भी वहा आ गया।
इठाबाई लगातार उल्टियां कर रही थी। उसके पेट पर बोहोत ही जादा जोर पड़ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे अंदर से कोई आंतडिया जोर से खींच रहा हो। उसने अपने किडनी के पास पेट को हाथ लगाया। यह दर्द उससे सहा नही जा रहा था। उज्ज्वला लगातार उसके पीट के ऊपर से अपना हाथ फिरा रही थी। वह भी रोने लगी थी।
थोड़ी ही देर बाद राजेंद्र अपने कार में आया। वह गाड़ी से उतरा उन्होंने इठाबाई को अपनी कार में बैठाया। उज्ज्वला, लीलाबाई और दादाभाऊ भी उसके साथ बैठ गए। फिर वह निकल पड़े। उज्ज्वला ने अपने हाथ में एक थैली पकड़ी हुई थी। वह लगातार उल्टियां कर रही थी। उसकी हड्डियों पर भी बोहोत जोर पड़ रहा था। उसने अपनी आंखे बंद कर ली थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे अब वह मरने वाली है।
श्रावण रो रहा था। वह बंगले की ओर चल पड़ा। मैरी बेड पर बैठी हुई थी।
श्रावण बंगले के अंदर चला गया। वह मैरी के दरवाजे के पास जाकर खड़ा रहा।
“क्या हुआ श्रावण चाचा आप रो रहे हो क्या?”, मैरी ने कहा।
“तुम ये क्या कर रही हो? मैं तुमसे भिक मांगता हूं हमे छोड़ दो।“, शांताराम ने कहा। और वह अपने घुटनों पर धीरे धीरे बैठ गया और अपने हाथ जोड़कर रोने लगा। क्योंकि वह अब कुछ भी नही कर सकता था। वह बोहोत जादा डर गया था।
“लेकिन मैंने तो कुछ भी नही किया। आप ये क्या बात कर रहे हो श्रावण चाचा? हुआ क्या है?”, मैरी ने दुःख भरी आवाज में कहा।
श्रावण वही बैठकर रो रहा था। वो वहा से उठा और अपने घर चला गया। श्रावण अब दगड़ू के पास बैठ गया। वो वही बैठकर रो रहा था। थोड़े ही वक्त में रेशमा को फोन आया। यह फोन राजेंद्र का था।
“दादाजी अब दादी नही रही।“, राजेंद्र ने रोते हुए कहा।
“मुझे बताओ की वो कैसे मरी? उसे तो बस उल्टियां हो रही थी ना?”, श्रावण ने कहा।
“डॉक्टर का कहना था की उल्टियां बोहोत जादा करने से उनके आतडीयोंपर, पेटपर और हड्डियों पर बोहोत जोर आया था। वह इस तकलीफ को सह नहीं पाई और उसने अपना दम तोड़ दिया।“, राजेंद्र ने कहा।
फोन रखते ही श्रावण रोने लगा।
रेशमा ने कहा, “क्या हुआ दादाजी?”
“कुछ नही बेटा तुम्हारी दादी आ रही है हा।“, श्रावण ने कहा।
“वो ठीक तो है ना?”, रेशमा ने रोते हुए कहा।
यह सुनते ही श्रावण और जोर से रोने लगा।
“वो अब नही रही।“, श्रावण ने कहा।
यह सुनते ही रेशमा भी अपने कमरे में जाकर रोने लगी।
हिमेश की कार आई। साथ में बाकी गाड़ियां भी आई। वह सारे राजेंद्र के घर इकठ्ठा हो गए। वह सारे रोने लगे थे। दगड़ू अब उठकर बाहर आ गया। और बस अपनी बाते बड़बड़ाने लगा। उसे देखकर वे लोग और भी जादा रोने लगे। उसी वक्त राजेंद्र की भी कार आई। वह सब रो रहे थे। देखते ही देखते फादर डेविड भी अपनी पत्नी, लड़का और लड़की के साथ आए। चर्च के कुछ लोग भी आए। दादाभाऊ ने अपनी बहन को भी फोन किया। जो दगड़ू और इठाबाई की इकलौती बेटी थी। थोड़े ही देर बाद वो भी आ गई।
आज फिर से बस्ती के लिए बोहोत ही दुःख भरा दिन था। सब लोग उनके लिए दुःख और हमदर्दी जता रहे थे। आखिरकार सब विधियां हो गई। कब्रस्तान में फिर से एक क्रॉस लग गया। सब अपने घर चले गए। रात के दिन चर्च के कुछ लोग उनके लिए खाना लेकर आए। श्रीकांत और नीलम ने भी उनके लिए खाना तैयार किया था। सारे उनके दुःख में शामिल हुए थे। लेकिन श्रावण अपने ही सोच में डूबा हुआ था।
श्रीकांत और नीलम अपने बेड पर बैठे हुए थे।
नीलम ने श्रीकांत से कहा, “ये सब क्या हो रहा है? यहां आकर हमने कुछ गलती तो नही की ना? इन सब बातों का क्या असर होगा हमारे रानी और पनू पर?”
“हां! तुमने सही कहा। लेकिन ऐसी हालात में हम उन लोगों को छोड़ भी नही सकते। उन्हे लगेगा की हम उनकी बातों से तंग आ गए है। ऐसी हालात में तो हमे बस्ती वालों के साथ खड़ा रहना चाहिए। और रही अपनी बच्चियों की बात तो वे दोनो बोहोत समझदार है।“, श्रीकांत ने कहा।
“हां! वो तो है। लेकिन वो भी डर गई होगी ना। उनके पढ़ाई पर भी असर हो रहा होगा।“, नीलम ने कहा।
“अरे मुझे नहीं लगता। अपने रानी को तुम जानती हो ना वो बोहोत मजबूत है और बातों को अच्छे से समझती है। वो पनू को भी संभाल लेगी। अगर तुम्हे ऐसा ही कुछ लगता है तो हम उनसे कल बाते करेंगे।
अक्षदा और प्रज्ञा भी अपने कमरे में बैठकर इन्ही सारी घटनाओं के बारे मे बात कर रहे थे।
“रानी क्या कहा फादर ने तुम्हारे सपनों के बारे में? तुमने पूछा या नही?”, प्रज्ञा ने कहा।
“अरे मैने फादर से बात नहीं की मैने अनुग्रह और किशोर से बात की थीं।“, अक्षदा ने कहा।
“अच्छा! अनुग्रहss हम्मss।“, प्रज्ञा ने अक्षदा को चिढ़ाते हुए कहा।
“अरे चुप कुछ भी।“, अक्षदा ने शरमाते हुए प्रज्ञा से कहा।
“अच्छा बता क्या कहा उसने?”, प्रज्ञा ने कहा।
“उसने कहा कि ये एक वरदान है। तुम्हे इसपर काम करना चाहिए। तुम्हे ईश्वर पहले ही सचेत करते है की आगे क्या होने वाला है। तुम आत्मिक दुनिया से बोहोत जादा संवेदनशील हो। तुम्हे सपनों को समझना होगा। इसके लिए तुम्हे प्रेयर में अपना समय बिताना होगा।“, अक्षदा ने कहा।
“हां। मुझे भी यही लगता है। आज का हादसा सच में बोहोत बुरा हुआ। सुना की उल्टियां करने से दादी जी की मौत हुई और देखो तुम्हारा सपना भी इस घटना से ही थोड़ा बोहोत मिल जुल रहा था की एक औरत जमीन पर लेटकर तड़प रही है और उसका मूंह खुल रहा है और बंद हो रहा है। और मूंह में से उसके काला धुंआ बाहर आ रहा है।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां! काफी बुरा हुआ दादी के साथ।“, अक्षदा ने कहा।
“अच्छा सुनो रानी! वो किशोर नाम का लड़का तुम्हारे ही क्लास में है। है ना?”, प्रज्ञा ने कहा।
“हां है। वो भी बोहोत होशियार है। तू उसके बारे में क्यों पूछ रही है? हsssम”, अक्षदा ने कहा। और वह हंसने लगी।
“अरे ऐसा कुछ नही रानी।“, प्रज्ञा ने शरमाते हुए कहा।
“तो मेरा भी कुछ नही है।“, अक्षदा ने कहा।
“अच्छा ठीक है। छोड़ देते है ये सब बाते।“, प्रज्ञा ने कहा।
“हां! वही तो। चलो कल स्कूल जाना है हमे। प्रार्थना करके सो जाते है अब।“, अक्षदा ने कहा।
प्रार्थना करने के बाद वे दोनो सो गई।
By Kishor Ramchandra Danake
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