By Mamta Srivastava
देखा है ऊर्जा को
अपने अन्दर
सबके अन्दर
कण- कण के अन्दर
क्षण-क्षण के अन्दर
ऊर्जा धारा शाश्वत बहती
हर रूप सर्व अणु में रहती
इस ऊर्जा को यदि कर सकते परिवर्तित
फिर क्या असीमितता उसकी कथित
इसको दे शक्ति किस तरह
सक्षमता हो परिपूर्ण जिस तरह
योग्य हो स्वयं को पहचाने
योग्य हो तो खुद को संवारे
बिखरकर,बनकर,संवरकर,निखरकर सघन
शक्ति से भर ले अपना अंतर्मन
अंतर में हो जो शक्ति समाहित
स्वयं से परे करे तब समग्र विश्व-हित
असीम ऊर्जाओं का एक संसार
जहाँ से संभावनाएं अपार
बन सकती समुद्र जिसकी हर धार
ऊर्जा पर यदि हो सद-अधिकार
समय है, क्षमताओं की खोज का
समय है, बोध कर, प्रज्ज्वलित ओज का
समय है, अंतर्मन की क्षमताओं के सर्वश्रेष्ठ प्रयोग का
समय है, साहस भर स्व-विश्लेषण के योग का
मानव है, जरा उठे, हो जाग्रत, जागे हम
मकसद से अपने न भागे हम
है जीवन व्यर्थ निरुद्देश्य मात्र क्या ?
है अमूल्य तो फिर इसका उद्देश्य क्या ...
By Mamta Srivastava
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