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एक आशिक़ की कहानी

By Ayan Hossain


मे चांद की इंतज़ार मे बैठा था ,

पर वो तोह खुदको अयनेमे निहारते रह गयी ,

बेवक़ूफ़ थे हम जो उसकी रह देखते रहे,

पर वो तो हमें जलाके किसी और की घरकी रौसनी बन गयी।


आज़ाद परिंदे थे हम,

पर अज तो आजादी भी मनो झंज़ीरो से ज़्यादा बेरेहम लगते हे,

तुमने किया वक्त का गुज़ारा पर हम ठहरे परवाना,

जो मोहोब्बत मे आग को गले लगा बैठे हे।


तुम कहते थे की हस्ता क्यू नेही, जब तुम खींचते थे मेरे तस्वीर ,

तुमने सिखाया मुझे हसना, दिखाये ख्वाब, तोड़ दिया वो सारे ख्वाब फिर।


By Ayan Hossain

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