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एक तेरी तस्वीर ही कब तक मुसलसल देखूँ

By Sandeep Sharma





एक तेरी तस्वीर ही कब तक मुसलसल देखूँ

आ मेरे क़रीब कि तुझको छूकर मुकम्मल देखूँ

देखूँ तुझको इस तरह के तुझको नज़र न लगे

दिल की आँख पे लगाकर प्यार का चश्मा देखूँ

देखूँ के कब तक जलता है मेरे सब्र का दिया

कब तक चलती है तेरे इनकार की हवा देखूँ

देखूँ हर लम्हा तुझे ही ये तो नही मुमकिन

हाँ कभी कभी दर-ओ-दीवार घर के देखूँ

हर कीमती चीज़ रखते हो दिल से लगाकर

सोचता हूँ कि ख़ुद को तुमको सौंपकर देखूँ

सुना है तुम्हे पुरानी सब बातें याद है अब तक

सो मैं भी तुम्हे कोई ख़त अधूरा लिखकर देखूँ

एक तेरी मौजूदगी मुझको पूरा करती है 'संदीप'

फिर कैसे सबके बराबर तुझको रखकर देखूँ


By Sandeep Sharma




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3 Comments

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FR Kuldeep Singh
FR Kuldeep Singh
Nov 27, 2022

Bhai badiya h ekdum

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Sachin Pathak
Sachin Pathak
Nov 23, 2022

gazab gazab

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Balram Jamdegni
Balram Jamdegni
Nov 19, 2022

bahut badiya sir

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