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एक भूख।

By Iram



यह कई रूपों में आती है


कभी पेट में जलती है, कभी मन में,


कभी यह जिस्म की मांग बन जाती है,


तो कभी सत्ता और दौलत की।



पैसों की भूख, जो इंसान को बदल देती है,


जिस्म की भूख, जो अपनी पीड़ा को छिपाती है,


सत्ता की भूख, जो हर हद पार करती है,


लेकिन सबसे गहरी भूख वह है,


जो किसी को नहीं दिखती,


जो भीतर की खाली जगह को भरने की कोशिश करती है।



भूख कभी खत्म नहीं होती,


क्या होती है?


नहीं,


यह सिर्फ रूप बदलती है,


जब एक भूख शांत होती है,


दूसरी आ जाती है


लेकिन


वही एक सर्वोपरि होती है।



भिखारी भी सड़क पर बैठकर अपनी भूख को शांत करने के लिए सब करता है,


आखिर में अंत में


पेट ही तो है।


वह मजबूरी में हर चीज करता है,


सिर्फ पेट की खातिर,


और वही पेट की भूख, जो करोड़पतियों को भी दौलत की और खींचती है,


जो कभी शांत नहीं होती,


जो हर दिन और ज्यादा की चाहत पैदा करती है।



कभी हम सोचते हैं,


क्या हमें भी पेट की भूख ने ही यह सब किया है?


क्या हम भी उसी भूख का हिस्सा हैं?


हर इंसान, चाहे वह सड़क पर हो या महल में,


भूख के आगे सब बराबर होते हैं,


सिर्फ तरीके ही तो अलग हैं।



फिर भी, भूख की तलाश कभी खत्म नहीं होती,


वो हमेशा किसी न किसी रूप में लौट आती है,


हर इंसान की अपनी भूख होती है,


लेकिन क्या कभी कोई पूरी हो पाती है?



By Iram

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