By Aahish Anilrao Deshmukh
सामने है बाबुल का पेड
आंगन में एक तुलसी भी
जहाँ चुभन है वही दवा है
एक मोहब्बत ऐसी भी
वो रुठे तो दिवार बने
मनाओ तो उसे ढक दे
है दिवार पर छत जैसी भी
एक मोहब्बत ऐसी भी
जहा तरंगो की उंचाई
वहा सागर की गहराई
है लहरों में भवर जैसी भी
एक मोहब्बत ऐसी भी
By Aahish Anilrao Deshmukh
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