By Kavita Batra
एक रविवार ऐसा भी हो ,
पूरे हफ्ते की भाग -दौड़ से थोड़ी ही सही ,
मगर राहत भी हो ।
थोड़ा सा आलस ,
थोड़ी सी कल की तैयारी का भी हो ।
मगर एक ख्वाहिश है उसका क्या कीजियेगा,
इन सब में, एक रविवार ऐसा भी हो ,
सामने तू , चुप्पी वाला सुकून हो,
गर्म चाय की प्याली के साथ , बातें हमारे आने वाले कल की भी हो ।
मुस्कुराते दोनो हम ,
कुछ पुरानी यादें, कुछ नयी हसरतों का भी हो ,
तू और मैं से बने हम , उसका अंजुमन भी हो ।
By Kavita Batra
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