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कन्या भ्रूण हत्या

Updated: 6 days ago


By Sagarika Roy


  मौन व्यथा 

मां तेरे कोख में मैं महफूज़ थी,

हर एक चिंताओं से मुक्त थी ।

तेरी नाड़ी से जुड़ी,

मैं पोषण पा रही थी,

अभिमन्यु की तरह ही,

जिए जा रही थी।

तेरी सहनशीलता से मैं ,

पूर्ण संवेदनशील थी ,

तेरी कर्मनिष्ठता से सीख ,

बन रही कर्म शील थी ।

सभी को खिला , 

अंत में तू खाती थी ,

उसके बड़े हिस्से से ,

मैं ही तो पोषण पाती थी।

तेरे रक्त का एक एक बूंद ,

मुझे विकसित कर रहा था,

तेरा स्नेह ,प्रेम और त्याग ,

मुझे आकर्षित कर रहा था।

अभिमन्यु की तरह ही,

दुनियादारी का चक्र चलाना ,

सीख रही थी,

और ,

तू थी कि,

हर एक पल ,

मुझे सींच रही थी।

पता नहीं क्या हुआ कि ___

एक रात मेरी ,

मृगतृष्णा टूट गई,

और तेरी नाड़ी की डोर,

मुझसे छूट गई।

तू बिस्तर पर निस्तेज लेटी थी,

खो गई मैं ,

जो तेरी ही बेटी थी ।

तेरी दोनों आंखों से,

अविरल अश्रुधारा थी बह चली,

तू थी मौन,

अनकहा कष्ट सह रही ।

उस अश्रुधारा का हरएक बूंद ,

मेरे अजन्मे शरीर का लहू था ,

तेरे मेरे अनचाहे अपूर्ण मिलन की ,

मौन व्यथा अब कहूं क्या ?

मौन व्यथा अब कहूं क्या?

मौन व्यथा अब कहूं क्या?


By Sagarika Roy



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