By Kabir Anand
एक अनदेखा सन्नाटा सा छाया है,
जाने कहाँ खुशियों को वे दफन कर आया है,
जो सड़कें जगमगाया करती थीं हरदम में एक ज़माने में
उन पर आजकल एक गम का साया सा लहराया है।
एक अनदेखा, अनकहा अंधेरा है जो छाया है,
वक्त ने ना जाने कैसा रास्ता आखिर अपनाया है |
एक अनदेखा, अनकहा अंधेरा है जो छाया है |
न कल्पना करी थी इस पल की कभी,
ना उम्मीद थी कि आएगा ऐसा दौर भी कभी।
जब बच्चों की खिलखिलाट नहीं,
बल्कि उनकी कब्र में दफन यादें होंगी।,
एक माँ की अपनी बेटी से मिलने की,
ऐसी न जाने हजारों मुरादें होंगी |
जो बच जाएगा इस दहशत से,
उनकी भी जान की कहाँ कोई कीमत होगी,
उनकी भी आखिर कहाँ कोई खिदमत होगी |
बस सबके कब्र होंगे,
और दफन उसमें अनगिनत बेज़ुबान
कहानियों होंगी।
हर बच्चे की ख्वाहिशें
कहाँ अब पूरी होंगी,
जिनपर जान कुर्बान किया करते थे,
जिनकी छात्र-छाया में अपने जीवन का सार ख़ोजा
करते थे,
वे तो समा गए इस दुनिया की जंजाल में कहीं |
आखिर वे माँ-बाप कहाँ बचे
उस नहानी सी जान के इस दुनिया में कहीं,
वे तो चले गए इस दहशत भरी जिंदगी से हार के,
छोड़ अपनों को वे तोह चले गए सुकून की तलाश में,
सुकून की तलाश में,
सुकून की तलाश में ||
By Kabir Anand
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