By Kamakshi Aggarwal
टिमटिमाते तारों के बीच,
सिसकती हवा के अंधियारे के बीच; तलाशती दो आँखे हैं,
मौत को नहीं, जीने के एक सहारे को फिर।
आसमान में अभी भी उजाला है,
चाँद ने अपनी किरणों को धरती पर उतारा है,
उसी चाँद को निहार रही है,
वो नन्ही दो आँखे,
चकोर बन उसी तक उड़ान पूरी करना चाहती है, वो दो आँखे ।
पर यह चकोर आज टूटी है,
इसकी जात किसीने आज पूछी है,
इसके सपनों पर आज लगा फुल स्टॉप है,
किसीने इसे छोटी जात का बुलाकर
तोड़ा इसके सपनों का वजूद है।
जिस सच को वो सालों तक झुठलाती आई,
टीचर की पढ़ाई के अनुसार
खुद को सब के बराबर ही बताती आई,
उस सच ने आज उसे अंदर तक झंझोरा है,
क्या सपने पूरे करने के लिए ऊँची जात का होना जरूरी है ?
यह सवाल उस नन्हें पक्षी ने,
खुद ही खुद से पूछा है।
इस कश्मकश के बीच,
उसके सपनों में उसकी अध्यापिका आई।
उनकी पढ़ाई गई सीखे,
उसके मन में फिर दोराही ।
तुम नन्हें बच्चें देश के अगले नौजवान हो,
ऐसा कहती सपनों में अध्यापिका नज़र आई।
तुमसे ही चलना देश का संविधान
इस बात ने उस नन्हे पक्षी की आँखों में, फिर से चमक जगाई।
याद आई फिर उसे सारी घटनाएँ,
जो आज तक हुई है।
कैसे वो सबके सोच को पिछाड़ कर,
कदम-कदम अपने सपनों के पास आई है।
आज की घटना के बाद उसने,
समाज की वास्तिविकता पहचान ली।
पर अपने सपनों को न छोड़ने की,
मन में उसने ठान ली ।
वो समझ गई आसान रास्ता नहीं,
पर कामयाब उसको होना है।
ऊँच-नीच के जात का,
बीज न आगे बोने देना है।
क्रांतिकारी की ज्वाला से उसको
सब के मन को स्वच्छ करना है।
देश की शान को आगे बढ़ाकर
उसे हर मैदानमे अपनीफतेहका झंडा लहरानाहै।
By Kamakshi Aggarwal
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