By Satya Deo Pathak
सोते सोते खुल गई है नींद,
सोचता हूं कुछ लिख लूं।
क्या हुआ की टूट गई नींद?
ज़रा याद तो कर लूं।
सो गया था जल्दी आज,
सोमवार थकान भरा दिन था आज।
सोने से पहले पढ़ रहा था गीता का सार।
सो गया किताब को लेकर साथ।
देखा स्वप्न कुरुक्षेत्र का,
युद्ध हो रहा था अपनों से अपनों का।
अर्जुन हाथ जोड़ कर कृष्ण से पूछें,
कैसे बाण चलाऊं अपने भाई बंधु पितामह पर?
कृष्ण हैं कहते उठो कौंतेय ,
एक क्षत्रिय एक योद्धा हो तुम।
जीत गए तो धरती का सुख भोगोगे,
हुई पराजय तो वीरगति प्राप्त करोगे।
कर्म करो बस कर्म करो,
बाण उठाओ संघार करो।
कोई नहीं कुरुक्षेत्र में तेरा,
है रण ये, जो लड़ा वो ही जीता।
खुली आंख तो सोच रहा हूं।
जीवन तो है रण, हर दिन ही लड़ता हूं।
गैरो से ज्यादा अपनो से लड़ता हूं।
स्वार्थ के रिश्ते फिर क्यूं शोक मनाता हूं।
अर्जुन ने ज्यों युद्ध किया कर्म किया,
मैं भी राह वही चलता हूं।
जो करना है बस करूं वही,
परिणाम की चिंता ना करता हूं।
By Satya Deo Pathak
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