By Yogesh Kumar Pradhan
कभी त्याग के अपने धुंधले चश्मे
तू ऐनक कवि का पहन के देख,
सब देख ली दुनिया आंख मूंद कर,
अब खोल के अपने नयन तो देख।।
बस अपने चार दीवारों से,
कभी देख परे घर बारों से।
मनमोहक विस्तृत व्योम देख,
पीकर पावन यह सोम देख।
काटों में पुष्प खिला भी है
हर विष में सोम मिला भी है।
तो हटकर अपने कामों से
तू देख कभी इस बाग को भी
हर पुष्प, भ्रमर, काटों को देख,
पंखुड़ियां क्षीण पराग को भी।
By Yogesh Kumar Pradhan
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