By Nandita Bondre
कहीं रोज, हमे वो तसवीर बनना था,
चित्रकार होकर, कभी कला भी केहलाना था
कही रोज, हमे सुंदर अक्षर में
लिखी गयी शायरी होना था,
मगर खामीयों पर शेर हम बनाते,
उन्हे तो बस रोना आता था
कही रोज, हमे भी उनका चांद होना था,
अरे ऊस सितारे को न जाने क्या मालूम,
वो चांद भी ऊस के लिये जलता था
कही रोज, हम चाहते वो हमारी खामियों को समझ लेते,
फिर एक शाम याद आया,
कागज की नाव को, गहरे समुंदर पर बेहना कहां आता था
By Nandita Bondre
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