top of page

किस्से

By Sheikh Wasim Mustafa (Sheikh Sahab 007)



महफिलों में हमारे किस्से सुनाने बैठा हूं

कागज़ों पर अपने हिस्से गवाने बैठा हूं


हमे अपनाना शायद गवारा नहीं तुमको

मैं सिर्फ़ तुम्हारे ज़मीर को मानने बैठा हूं ।


By Sheikh Wasim Mustafa (Sheikh Sahab 007)




0 views0 comments

Recent Posts

See All

Shayari-3

By Vaishali Bhadauriya वो हमसे कहते थे आपके बिना हम रह नहीं सकते और आज उन्हें हमारे साथ सांस लेने में भी तकलीफ़ होती...

Shayari-2

By Vaishali Bhadauriya उनके बिन रोते भी हैं खुदा मेरी हर दुआ में उनके कुछ सजदे भी हैं वो तो चले गए हमें हमारे हाल पर छोड़ कर पर आज भी...

Shayari-1

By Vaishali Bhadauriya इतना रंग तो कुदरत भी नहीं बदलता जितनी उसने अपनी फितरत बदल दी है भले ही वो बेवफा निकला हो पर उसने मेरी किस्मत बदल...

Comments

Rated 0 out of 5 stars.
No ratings yet

Add a rating
bottom of page