By Abhishek Tyagi
शोहरत कमाने से पहले हर खोटी आदत गवानी पड़ती है
ख़ुशी के चंद लम्हों की भी यहाँ कीमत चुकानी पड़ती है
यूँही मिलती नहीं हैं बूंदों की फुहार जमीन को खैरात में
गर्मी में तप कर बादलों से बरसात उसे कमानी पड़ती है
अक्सर मुरझा जातीं हैं कलियाँ ढिलाई प्यार में हो जाने पर
महक कर फिर खिलने से पहले कई मर्तबा मनानी पड़तीं हैं
अंगारों पे चलने की नहीं करता कोई ज़हमत इस जहान में
इज़हार-ए-मोहब्बत की उम्र भर जो कीमत चुकानी पड़ती है
ख्वाब होता है एक आशियाने का सभी का अज़ीज़ की खातिर
ईंट ईंट जमा कर शिद्दत से पक्की ईमारत वो बनानी पड़ती है
मुट्ठी भर ही दिखे बाज़ सरीखे फ़लक-परवाज़1 बादलों में बशर
महफूज़ रास्तों पर रेंगते जिंदगी बिताने में जो आसानी पड़ती है
By Abhishek Tyagi
コメント