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कुछ शेर और उनका अर्थ

By Usaid Shaikh


#तलाश में भी अगर मेरी; कारवां हो मेरा नहीं हूं मैं, के बजुज़ मेरे कुछ निशां हो मेरा (बजुज़ = सिवाए) इस शेर में अपने दोस्तों से जुदा होने का दर्द दिखाया गया है "अपने दोस्तों से जुदा हो कर मैं इतना अकेला हो गया के दुन्याँ में सिर्फ मैं ही अपना निशान रह गया हूं" यानी लोग सिर्फ मुझे देखते हैं, कोई मुझे जानता नहीं, और लोगों में मेरी इतनी ही पहचान है, या इसका अर्थ ये है के दोस्तों से अलग होकर, दुन्याँ के कारोबार में उलझ कर मैं अपनी असल पहचान खो बैठा हूं, मेरी असल पहचान तब हुवा करती थी, मगर अब मुझे लोगों के expectations के हिसाब से रहना पड़ता है, और इस में मेरी असल वाली पहचान खत्म हो गई है #ये बाज़्गश्त भरी मह्फिलों की चीज़ नहीं वो खंडरों से भी निकले जो हम ज़बां हो मेरा (बाज़्गश्त= गूंज) जब आप खंडरों में अवाज लगाएँगे, आपको अपनी ही बात सुनाई देगी मगर जो आपके सच्चा दोस्त हैं, और आप उन से कोई बात करें तो भले ही वो बहोत सी चीज़ों में आपकी तरह सोचें, मगर उन्हें आपकी हर बात ही से सहमत नहीं होना चाहिये, क्युंकि आप एक जीती जागती महफिल में हैं, किसी खंडर में नहीं #यूं आईने को सवारा के खुद को भूल गया वो अक्स खो गया मुझ से; जो तर्जुमां हो मेरा (तर्जुमां= अनुवादक) किसी इंसान को या समाज को सुधारने में बहोत ज़्यादा मह्नत करनी पड़ती है और बहोत धैर्य रखना होता है, इतना के आप जवान से बूढ़े हो जाएं, और जब आईने में अपना चहरा देखें तो पहचान ना सकें समाज को सुधारने में ज़िन्दगी लग जाती है, और अगर समाज में सुधार आता है तो उसे जीने के लिये आपकी ज़िन्दगी कम पड़ जाती है, मगर ये काम है इतना प्यारा के इस को करने वाला अपने आपको भूल जाता है ############ #थका थका इसे लिक्खूं; रुका रुका लिक्खूं क़लम को कैसे भला अपने बे वफा लिक्खूं अपने क़लम को बेवफा कहना, यानी उसने अपने जज़्बात के साथ वफा नहीं की और वो नहीं लिक्खा जो लिखना चाहिये था शायर उसे थका थका या रुका रुका लिखना चाहता है, मगर बेवफा नहीं लिखना चाहता मगर क़लम अपने आप नहीं चल सक्ता, अगर क़लम रुका है यानी लिखने वाला रुक गया है शायर एक ऐसे हाल में है के वो, वो सब नहीं लिख सक्ता जो मह्सूस करता है, मगर ये उसकी मजबूरी है, उसकी खुशी नहीं # अयां है मेरे सलासिल से मेरी आज़ादी बहार भी तो है मत्लूब; गर खिज़ां लिक्खूं (अयां= स्पष्ट सलासिल= ज़ंजीरें )



अपनी ज़ंजीरें शायर को अपनी आज़ादी की निशानी मालूम होती हैं, यानी वो अपने मिज़ाज से आज़ाद है वरना उसे ज़ंजीरें ना लगी होतीं एक स्टूडेंट खूब मह्नत कर के पढ़ाई करता है, देखने में लगता है के वो किसी क़ैदी की तरह हो कर रह गया है, मगर असल में उसे आज़ादी की ख्वाहिश है, अपने पैरों पर खड़ा होना है इस लिये उस ने कुछ दिनों की क़ैद क़बूल कर ली है, और ऐसा करना ही ये बता रहा है के उसे अपने पैरों पर खड़ा होना कितना पसंद है #है शब को आस्मां मेरा; तो दिन में हमदम है ये क्या के साये को अपने मैं बे वफा लिक्खूं जब सूरज ढ़ल जाता है तो इंसान का साया, जो हमेशा उसके साथ रहा वो भी उसे छोड़ देता है _ शायरी में साये के ढ़ल जाने की क्रिया को इस तरह से बहोत इस्तेमाल किया गया है मगर यहां शायर मह्सूस करता है के शाम होने के बाद उसका साया साथ नहीं छोड़त बलके सारे आसमान में फ़ैल जाता है शाम का वक़्त, दिन भर की भाग दौड़ के बाद अपने खयालों से बातें करने का वक़्त होता है उस वक़्त जो चीज़ शायर के लिये आसमान जितनी बड़ी है, दिन में वो उसके साये में सिमट जाती है, यानी उसे मज़्दूरी करने के लिये उन एह्सासात को, आदर्शों को, अपने फन को खत्म कर देना होता है जो उसके लिये आसमान जितने बड़े हैं ####### #ना जाने मुझ को कहां ले चली हैं बरसातें धुवां धुवां हैं सभी सिलसिले सितारों के ग्लोबल वार्मिंग ने मौसमों को बिगाड़ दिया है, आप पुरानी वाली बारिशों की ख्वाहिश करें तो आपको धुवां (pollution) मिलेगा या ये के शायर इस हाल में है के जब वो आसमान की तरफ देखता है तो आंखें भीगी होने से उसे सितारे धुवां धुवां मालूम होते हैं, सितारों की बात इस लिये अहेम है के पुराने वक़्त में क़ाफिले रास्ता मालूम करने के लिये इन्हें देखा करते थे, इस में शायर जिन बारिशों का ज़िक्र कर रहा है वो उसके आसुवों की बारिशें हैं. और इस हाल में उसे सितारे धुवां धुवां मालूम हो रहे हैं, यानी उसे ये भी नहीं पता के उसे कहां जाना है #तो क्या फरार भी खुद से; तलाश है खुद की के अजनबी ना लगे ख्वाब कुछ बहारों के इस शेर में बहार यानी वो चीज़ जो इन्सान हासिल करना चाहता है इसे एक गरीब आदमी की मिसाल से समझते हैं, अमीर होना उसके लिये बहार है वो आदमी अपने आप से भाग कर अमीरों की ज़िन्दगी पर गौर करता है, तब उसे पता चलता है के जिस तरह कुछ ख्वाब, कुछ ख्वाहिशें उसे परेशान रखती हैं, उसी तरह अमीरों के भी कुछ ख्वाब होते हैं जो उन्हें परेशान रख्ते हैं_ गरीब जो समझते हैं के अमीरों को कोई परेशानी नहीं होती तो ये गलत बात है इस तरह जब वो अपने आप से भागा, तो उसे अपने ही बारे में एक नई बात पता चली के उस में और अमीरों में ये चीज़ एक जैसी है, इस्से वो सोचता है के अपने आप से भागना भी कहीं अपनी तलाश ही तो नहीं, क्या पता अपने आप से भाग कर अपने बारे में और क्या क्या मालूम हो ###### #उलझती है कभी यूं भी; मेरे अल्फाज़ से धड़कन खमोशी की ज़बां सुनने की जैसे हो सज़ा ये भी जो इंसान खामोशियों की ज़बां समझ सक्ता है, उसे अपना हर एहसास लफ्ज़ों में बयां करने में परेशानी होती है जैसे वो समझता है "क्या मैं ये बात भी कहूं??, उसे खुद नहीं समझ जाना चाहिये??" ये इस लिये के जो आदमी खुद बिना कहे समझ लेता है, वो दूसरों से भी यही उम्मीद रखता है हिंदी की कवीताओं की बात अलग है मगर हिंदी वालों के लिये गज़ल के शेर समझना कुछ मुश्किल हो सक्ता है इस लिये अपने कुछ शेरों को explain किया है, और बाक़ी आप के लिये हैं



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