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क्या करें

By Prabhneet Singh Ahuja


अभी समझता नहीं खुद को,

नादान हूँ  मैं;

क्या करें 

इंसान हूँ  मैं

जवाब नहीं है, 

तेरे सवालों का 

परेशान हूँ  मैं;

क्या करें 

इंसान हूँ  मैं

मरते दरख्तों का 

बाग़बान हूँ मैं;

क्या करें 

इंसान हूँ  मैं

किसी की कर न सका मदद 

घम गुसार हूँ  मैं;

क्या करें 

इंसान हूँ  मैं

ख्वाइशों, हसरतों  

का बिखरा मकान हु मैं;

क्या करें 

इंसान हूँ  मैं

अपनी खामियों से,

नाराज़ हूँ  मैं;

क्या करे,

इंसान हूँ  मैं|


By Prabhneet Singh Ahuja


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