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क्या खोया क्या पाया?

By Neeru Walia


बंद मुट्ठी में फिसलती

रेत की तरह ,

ढलती शाम की तरह, ढल रही जिंदगी।

एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में ,

एक दूसरे को छल रही जिंदगी ।


बदलते वक्त के साथ, मौसम बदल गए,

सोच बदली , इंसान भी बदल गए ।

रब की इंसानियत पर इतनी रहमत रही ,

मां बाप के किरदार वही रहे।

धन -दौलत के नाम पर जीने के मायने बदल गए,



रब से दुआ कर, जो संतान पाई।

रोजी- रोटी के नाम पर वे विदेश में जा बसी,

जिंदगी के नाम पर जो मां बाप के हिस्से आया,

कोई प्लाट या डालर के नाम पर धन आया।

जिन बच्चों के संग बुढ़ापे में सहारे की उम्मीद जगी थी,

बूढ़ी हड्डियों में वह भी धूमिल पड़ गई ।


जिंदगी की भाग दौड़ में क्या खोया ,क्या पाया?

इसी सोच में जिंदा लाश की तरह जिंदगी निकल गई।

ढलती शाम की तरह , ढल रही जिंदगी।

ढलती शाम की तरह , ढल रही जिंदगी।


By Neeru Walia





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Vikash K
Vikash K
Sep 24, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

NICE

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Simran Kaur
Simran Kaur
Sep 24, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

very nice

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Rahul Jain
Rahul Jain
Sep 24, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

nice

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Goldy Walia
Goldy Walia
Sep 24, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

nice


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Rajbeer Walia
Rajbeer Walia
Sep 23, 2023
Rated 5 out of 5 stars.

Nice

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