By Pankaj Pahwa
कहीं तो जलती धूप है, कहीं पे है सर्द छाया,
क्यूं इतना फर्क बनाया, क्यूं इतना फर्क बनाया..
कहीं तो काला धन है प्रभु, कहीं दिन भर में कुछ न कमाया,
क्यूं इतना फर्क बनाया, क्यूं इतना फर्क बनाया,
कहीं खेले बच्चे महलों में, कहीं रस्ते को घर बनाया,
क्यूं इतना फर्क बनाया, क्यूं इतना फर्क बनाया
कहीं महंगी महंगी गाडियां, कहीं मीलों है पैदल चलाया,
क्यूं इतना फर्क बनाया, क्यूं इतना फर्क बनाया
कोई फेंके लजीज पकवानों को, कोई रोटी तक से वंचित पाया,
क्यूं इतना फर्क बनाया, क्यूं इतना फर्क बनाया
कहीं भरा पूरा परिवार है, कहीं सर पे ना मां बाप का साया,
क्यूं इतना फर्क बनाया, क्यूं इतना फर्क बनाया
By Pankaj Pahwa
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