By Murtaza Ansari
क्यूं बैठे बिठाए से चुप चाप हैं हम
घटाते बढ़ाते ये दिल की जगह को
इधर पे तो कुछ लोग, उधर तो खुदा है
इधर को जगह दी के नादान हैं हम
ये दिल अब है ज़िंदा या मुर्दा पता ही नहीं है
के इस कत्ल के भी गुनाहगार हैं हम
जो गिरते संभलते किसी पर भरोसा किया
यही फैसले के ख़ताकार हैं हम
ये दिल अब भी रोता है मुर्दा नहीं है
के टूटे हुए से हैं गुमनाम हैं हम
मुजरिम तो अब भी पता ही नहीं है
उसे देखने से ही खुशहाल हैं हम
खुदा ने बनाया, बढ़ाया, गिरा कर संभाला
उसी को ही भूले हुए हैं कि मक्कार हैं हम
है धोखा ये दुनिया, सभी को है मरना
तअज्जुब इसी में गिरफ्तार हैं हम
By Murtaza Ansari
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